चौबट्टाखाल विधानसभा के सतपुली में खुला हंस फाउंडेशन का अस्पताल एक ऐसी उपलब्धि है जिसे उत्तराखंड की सरकारें दस जनम् में भी पूरा नहीं कर सकती। पता है क्यों? क्योंकि उनके खुद के पेट इतने बड़े हैं कि उसमें सौ अस्पतालों का पैसा आसानी से हजम हो गया है।
खैर, इस चोरी और सीनाजोरी के बीच कुछ ऐसे भी उदाहरण है जो समाज में मानवता के जीवित होने का साक्षात् स्वरूप हैं। अगर ऐसा न हो तो ऐ नेता तो जीते जागते पिचाश हैं पता नहीं क्या क्या खा गए हैं बिना डकार लिए।
छोडिये इन हरामखोरो पर क्या समय खराब करना।
यह पोस्टर चौबट्टाखाल विधानसभा में लगभग हर दस पन्द्रह किमी पर लगे हुए हैं। पहली नजर में लगा यह क्षेत्रीय विधायक के हैं पर दोबारा देखने पे पता चला ऐ भोले जी महाराज और माता मंगला जी की उस उपलब्धि का परिचायक है जो यह बताता है कि नाम के आगे बाबा, महाराज, संत, समाजसेवी, लिखने से समाज सेवा का कार्य सिद्ध नहीं होता है बल्कि कुछ करके दिखाने से होता है।
जनता जर्नादन, नकली और असली समाजसेवियों में फर्क करना सीख लो!
जो बरसों से संवैधानिक पदों पर बैठे हुए हैं वो कोई काम न कर पाए फिर भी बेहिचक उस पद पर लगातार कायम चूर्ण की तरह कायम हैं तो जनता के लिए बड़े शर्म की बात है।
सम्मान उनका करो जो आपके लिए जी रहे हैं उनका नहीं जो खुद के लिए जी रहे हैं।
उठो, जागो और जागरूक बनकर इंसान होने का परिचय दो नहीं तो तुमसे बेहतर तो जानवर हैं जो अपने हक के लिए हमेशा सजग रहते हैं।
बात बाकी तुमने तो करना वही है जो भीड़ का भेडिया कहेगा। फिर भी हमारा फर्ज है समझाना और बताना।