ऐसी भी होती है रामलीला 

ऐसी भी होती है रामलीला
रामलीलाएं आपने बहुत देखी और सुनी होंगी। रामलीला मंचन भारतीय संस्कृति का ऐसा सजीव उदाहरण जिसमें मान मर्यादा, प्यार प्रेम, आदर सत्कार, ज्ञान विज्ञान हर बात का समावेश होता है। यदि कोई सच्चे मन से भगवान् श्रीराम के द्वारा दी गई शिक्षा का दस प्रतिशत भी अपने जीवन में उतार ले तो शायद उसे कभी कोई दुख न हो।
आज जहां हर कोई इतना व्यस्त रहता है कि वो अपने परिवार को ही समय नहीं दे पाता है ऐसे में रामलीला का मंचन एक स्वागतयोग्य पहल है। यही वजह है कि आज भी हमारी संस्कृति में और अधिक प्रखरता आई है। इसका स्वरूप और अधिक विस्तृत हुआ है।
देवभूमि रामलीला एवं लोककला समिति द्वारा तुनवाला के लक्ष्मी गार्डन में आयोजित दस दिवसीय रामलीला के सातवें दिन सीताहरण का मंचन किया गया। इस अवसर पर पंचवटी में लक्ष्मण सीता संवाद, कंचन मृग के पीछे श्रीराम का जाना, रावण का साधु का भेष बदलकर आना और सीताहरण कर ले जाना आदि का मंचन का भक्तों ने आनंद लिया।
इस रामलीला की सबसे बड़ी विशेषता यह रही कि इसमें दो मंच बनाकर रामलीला का मंचन किया गया। अपने तरीके की यह पहली रामलीला है। समिति के अध्यक्ष रेवाधर इष्टवाल ने बताया कि एक मंच होने पर दूसरे दृश्य में अधिक समय लगता था ऐसे में हमने दो मंच बनाए ताकि एक दृश्य के बाद दूसरा दृश्य अनवरत चलता रहे।
इस अवसर पर दिनेश धस्माना, कविन्द्र इष्टवाल, नरेंद्र नेगी, देवेंद्र नेगी, मनोज रौंथान, सुनील ढौंडियाल, सुनील सिंह चौहान, सुनील अंथवाल, विजय नेगी, दीपक कंडारी, अजय ढौंडियाल, अनूप ढौंडियाल आदि उपस्थित रहे।