उत्तराखंड का आम जनमानस बहुत सरल, मिलनसार और दूसरे के दुःख दर्द को सहज समझने वाला होता था। उसकी जुबां जरुर कड़वी हो पर दिल हमेशा साफ होता था। द्वेष की भावना कभी भी लंबे समय तक नहीं रखता था। यही कारण था कि पहले के लोग अपने हिस्से की रोटी भी दूसरों को परोस देते थे। उनके अंदर दया और दानता कूट कूट कर भरी रहती थी। उनका प्रयास हमेशा समाज में एकजुटता बनाए रखने का था जिसका वो पूरा ध्यान रखते थे।
परंतु एक कहावत है कि दिन में एक समय ऐसा आता है जब आदमी की जुबां पर सरस्वती का वास होता है और उस समय बोले गए शब्द पत्थर की लकीर बन जाते हैं।
पुराने जमाने में जब कभी गांव के लोगों की आपस में लड़ाई होती थी तो उनकी जुबां फिसल जाती थी और उस समय निकले शब्द एक इतिहास बना देंगी किसे क्या पता था। ज्यादातर उनकी जुबां से निकले शब्द होते "तेरी कुडी पुंगडी बांजा पल्डी", "डाला जमला" आदि आदि। एक मत बहुत प्रसिद्ध है कि दूसरे को कही बात खुद पर भी लागू होती है। और यही वजह रही कि दूसरे के खेत खलिहान तो बांजा पड़े ही साथ ही अपना घर आंगन भी अछूता नहीं रहा।
इसलिए जो भी बोले सोच समझ कर बोलें। और हमेशा अच्छा अच्छा बोलें। क्योंकि क्रिया की प्रतिक्रिया विधि का विधान है। उत्तराखंड देवभूमि है आपकी कोई भी विनती अस्वीकार नहीं हो सकती।
बांजा कुडी और जुबां