देवभूमि रामलीला एवं लोककला समिति द्वारा आयोजित रामलीला मंचन के नवें दिन का शुभारंभ मुख्य अतिथि के रूप में पधारे सूर्यकान्त धस्माना, प्रदेश उपाध्यक्ष, कांग्रेस पार्टी, वरिष्ठ समाजसेवी कविन्द्र इष्टवाल, आचार्य योगेन्द्र प्रसाद रतूडी, गणेश खुगशाल "गणी" भाई, अर्चना थपलियाल द्वारा संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित कर किया गया।
तत्पश्चात रामलीला मंचन में लंका चढ़ाई करने से पूर्व भगवान् श्रीराम जी द्वारा समुद्र किनारे यज्ञ में रावण को आमंत्रित करना, नल-नील द्वारा समुद्र में पुल बनाना से लेकर विभीषण को लंका से बाहर निकालना और लक्ष्मण का युद्ध के लिए प्रस्थान करना का मंचन किया गया।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित सूर्यकांत धस्माना ने कहा कि बेशक रावण के पास सबकुछ था, सेना थी, रथ था, कुंभकर्ण, मेघनाथ था इसके बावजूद उसका युद्ध हारना तय था इसका कारण था उसके पास सत्य नहीं था। धर्म नहीं था। विश्वास नहीं था। उन्होंने कहा कि आज के परिप्रेक्ष्य में रामचरित मानस का विशेष महत्व है। घर से निकलने से पहले कम से कम चार चौपाईयों का अध्ययन करके निकलना चाहिए। जब कभी आप संकट में घिरे हों रामचरित मानस का स्मरण आपको नई शक्ति प्रदान करेगा। रामायण में हर रिश्ते के गुणों का वर्णन है। भागवत् हमें मरना सिखाती है पर रामायण हमें जीना सिखाती है।
समिति द्वारा दो मंचों के माध्यम से किए जा रहे मंचन पर सूर्यकांत धस्माना ने समिति के इस प्रयास की भूरि भूरि प्रशंसा की।
इस अवसर पर समिति के अध्यक्ष रेवाधर इष्टवाल, दिनेश धस्माना, कविन्द्र इष्टवाल, नरेंद्र नेगी, देवेंद्र नेगी, अशोक बिड़ला, मनोज रौंथान, सुनील ढौंडियाल, सुनील सिंह चौहान, सुनील अंथवाल, विजय नेगी, दीपक कंडारी, अजय ढौंडियाल, अनूप ढौंडियाल आदि उपस्थित रहे।
भागवत् मरना तो रामायण जीना सिखाती है - सूर्यकांत धस्माना