आज का दौर विकसित और संपन्नता का दौर कहलाता है। आम आदमी अति आवश्यक वस्तुओं से ऊपर उठकर विलासिता की वस्तुओं को ढूंढ रहा है। ऐसा प्रचलन दिखावी है या फिर हकीकत यह तो सब देख रहे हैं। परंतु दो वक्त की रोटी के लिए आज भी एक तबका कुछ भी कर गुजरने को तैयार बैठा हुआ है। आखिर पेट का सवाल है जनाब।
शादियों का सीज़न चल रहा है। आजकल की शादियों के दो रंग हैं एक तो वह जो दिखावे का है जिसमें पढे लिखे प्रतिष्ठित वर्ग के लोग जान भरते नजर आते हैं और दूसरा तबका वह जो बेजान सा खड़ा रहकर बुध्दिमान वर्ग के रंग को और रंगीन करने का कार्य करता है।
सबसे पहले बात करते हैं उस तबके कि जो दिखावी रंगों में रंग नाना प्रकार के व्यंजनों को चखने को आतुर रहता है।
शादियों में जहां तरह तरह के पकवान बने हुए हैं। हर कोई अपनी अपनी पसंद के अनुसार सारे पकवानों को चखना चाहते हैं। इतनी हड़बड़ाहट है कि कहीं कुछ खाने से रह न जाए इस चक्कर में भूख से ज्यादा लेकर कचरे के डिब्बे में डालने में जरा सा भी अफसोस नहीं होता है। यह वह तबका है जो बहुत ज्यादा बुद्धिमान, अनुशासन वाला और प्रतिष्ठित कहलाता है। और दिखावटी रंग लिए इन हरकतों को देखकर नहीं लगता कि इनके अंदर जरा सी भी बुध्दिमता बची हुई है।
अब बात करते हैं दूसरे वर्ग की जो कहने के लिए तो मजदूरी करने शादी ब्याह में आते हैं और खुद पुतलों सा बनकर हमें खुश रखने का प्रयास करते हैं।
बर्बाद होते अन्न को देखकर इनकी आत्मा की पीड़ा को वही समझ सकता है जिसने भूख की परिस्थितियों को करीब से देखा होगा। पर यह तो लाचार ठहरे कुछ बोल भी नहीं सकते हैं बस पुतलों की तरह खड़े रहकर मन ही मन खुद को कोसते रहते हैं।
हमारा देश कृषि प्रधान देश है और यहीं अन्न की सबसे ज्यादा बर्बादी होती है, भूख से मौतें भी यहीं होती हैं। अन्न का एक एक दाना बेहद कीमती है जनाब। शादी ब्याह हो, चाहे कोई भी आयोजन कोशिश कीजिए कि जितना आप खा सकें थाली में उतना ही लें। बच्चे, बूढ़े, जवान सब इस बात का ध्यान रखें कि अन्न की बर्बादी किसी भी रूप में ठीक नहीं है।
कम से कम उन चेहरों को देखिए साहब जो कठपुतली बनकर हाथ में थाली लेकर छः-छः घंटे तक बिना हीले ढुले आपका मनोरंजन करते हैं ताकि उन्हें एक वक्त का खाना नसीब हो सके।
देश की खुशहाली में आपकी छोटी सी भूमिका भी अति आवश्यक है।
भूख का संघर्ष