बाँज (Oak) फागेसिई (Fagaceae) कुल के क्वेर्कस (quercus) गण का एक पेड़ है। जिसे अंग्रेज़ी में 'ओक' (Oak) कहा जाता है। बांज का पेड़ अनेक देशों, उत्तरी अमरीका, पूरब में मलयेशिया और चीन से लेकर हिमालय और काकेशस क्षेत्र होते हुए, सिसिली से लेकर उत्तर ध्रुवीय क्षेत्र तक में पाया जाता है। विश्व में बांज की लगभग 400 किस्में ज्ञात हैं, मध्य हिमालयी क्षेत्र 1200 से लेकर 3500 मी. की ऊंचाई में बांज की मुख्यतया चार प्रजातियां जिन्हें बांज, तिलौंज, रियांज व खरसू नाम से जाना जाता है, पायी जाती हैं। कुछ किस्मों की लकड़ियाँ बड़ी मजबूत और रेशे सघन होते हैं। इस कारण ऐसी लकड़ियाँ निर्माणकाष्ठ के रूप में बहुत अधिक व्यवहृत होती है। उत्तराखंड के परिप्रेक्ष्य में बांज का अलग ही महत्व है। बांज चूल्हे से लेकर सिरहाने तक उपयोग में लाया जाता है। कृषि यंत्रों, मकान बनाने, खाना बनाने, घास, खाद के रूप में बांज का कोई सानी नहीं है। इसकी पत्तियां खांचेदार होती हैं और इसका फल गोलाकार व आगे से नुकीला होता है। कुछ बाँज फल मीठे होते हैं और कुछ कड़ुए। कुछ बाँज फल खाए जाते हैं और कुछ से टैनिन प्राप्त होता है, जो चमड़ा पकाने में काम आता है। बाँज के फल सूअरों को भी खिलाए जाते हैं। खाने के लिए फलों को उबालकर, सुखाकर और आटा बनाकर केक बनाते हैं। उबालने से टैनिन निकल जाता है।
बाँज का पेड़ धीरे-धीरे बढ़ता है। प्राय: २० वर्ष पुराना होने पर उसमें फल लगते हैं। पेड़ दो से तीन सौ वर्षों तक जीवित रहता है। इसकी ऊँचाई साधारणतया 100 से 150 फुट और घेरा 3 से 7 फुट तक होता है। कुछ बाँज सफेद होते हैं, कुछ लाल या काले। कुछ बाँजों से कॉर्क भी प्राप्त होता है। सफेद और लाल दोनों बाँज अमरीका में उपजते हैं। भारत के हिमालय में केवल लाल या कृष्ण बाँज उपजता है। बाँज का काष्ठ 100 वर्षों तक अच्छी स्थिति में पाया गया है। काष्ठ सुंदर होता है और उससे बने फर्नीचर उत्कृष्ट कोटि के होते हैं। एक समय जहाजों के बनाने में बाँज का काष्ठ ही प्रयुक्त होता था। अब तो उसके स्थान पर इस्पात प्रयुक्त होने लगा है।
उत्तराखंड में ब्रिटिश काल में बांज के स्थान पर चीड़ वृक्षों को महत्ता दी गई जो आज एक अभिशाप बनकर हमारे सामने है। बांज की जड़ों का पानी औषधी का काम करता है जो पेट संबंधी विकारों को दूर करता है। बांज भूकटाव को रोकने, वर्षा जल को संरक्षित करने, आक्सीजन का वृहत स्तर पर उत्पादन करने में सहायक है।
आज जरूरत है बांज के पोधों का बड़े स्तर पर रोपण करते हुए इसे एक अभियान का दर्जा दिया जाए।
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