हिंसा में "अ" लगाना भूले त्रिवेन्द्र सिंह रावत

हिंसा में "अ" लगाना भूले त्रिवेन्द्र सिंह रावत
जी हां, एक तरफ अक्टूबर का महीना चल रहा है जो अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी जी का जन्म महीना है। जिसके उपलक्ष्य में बड़े-बड़े कार्यक्रम आयोजित करके महात्मा गांधी जी के संदेशों को बढ़ावा देना है जिनमें अहिंसात्मक तरीके से अपनी बात को रखने और मनवाने पर जोर देना है। परंतु लगता है हमारे मुखिया जी अहिंसा के प्रति इतने संवेदनशील हैं कि वो हिंसा में "अ" लगाना भूल गए और अनशन पर बैठे बेचारे छात्रों को तबियत से कूटवा दिया। अरे साहब बात सिर्फ कूटने तक सीमित होती तो तब भी ठीक था मुखिया जी के सिपहसलारों ने तो छात्राओं को अपनी अभद्र भाषा में अच्छा खासा लेक्चरर भी सुना दिया।
हम धन्य हुए जो मुखिया जी ने गांधी जी के जन्म माह में बता दिया कि गांधी जी जीवित नहीं है इसलिए अहिंसा अहिंसा चिल्लाना छोड़ देना चाहिए। वो तो सिर्फ़ मंच पर बोलने में अच्छा लगता है कि अहिंसात्मक बनो - अहिंसात्मक बनो। वास्तव में तो सब हिंसा के परम प्रेमी हैं।
माननीय उच्च न्यायालय के आदेश के बाद भी निजी आयुष कालेज ज्यादा फीस ले रहे हैं और जो छात्र ज्यादा फीस जमा कराने में सक्षम नहीं हैं उनकी कक्षाओं में एंट्री बंद है। कालेज संचालकों का जिगरा इतना बड़ा है कि उन पर कोई असर नहीं हो रहा है। अब बेचारे छात्रों ने किताबों में पढ़ा होगा कि धरना-प्रदर्शन करने से, आमरण अनशन करने से मांगे पूरी होती हैं पर उन्हें यह बताना भूल गए कि यह सब पुरानी बातें हो चलीं हैं। आजकल तो उल्टा जमाना है, परिस्थितियों को देखकर लगता है कि अपने हक अधिकार के लिए हिंसात्मक होना जरूरी बनता जा रहा है।
वैसे भी मुखिया जी की कुर्सी वो नौ रत्न नहीं हिला पाए जिन्होंने हरीश रावत से गली गली कीर्तन करवा दिया था तो आप लोग तो बच्चे ठहरे। शुक्र समझो कि मुखिया जी की शराफत है जो 57 विधायक होने पर भी सिर्फ गाली गलौच और डंडे बजवाने तक सीमित हैं वर्ना इतने में तो आप सबकी चटनी बनाई जा सकती थी।
खैर, कुटाई तो हो गई पर मांग तब भी अधूरी ही रह गई। कूटने के बाद अगर मांग भी पूरी हो जाती तो भी बढिय़ा था। पर इसे दुर्भाग्य ही कहेंगे।
मेरी एक सलाह है उसे मान लो तो कुछ बात बन जाए। प्यारे छात्र-छात्राओं यहां धरना प्रदर्शन करने से कुछ नहीं होगा इससे बढिय़ा एक चक्कर दिल्ली होकर आ जाओ शायद कुछ बात बन जाए। आखिर दिल्ली है ही कितनी दूर।
मुखिया जी क्यों लें टेंशन जब दिल्ली से आनी है पेंशन।