कहानी महिलाओं के संघर्ष की


दर बदला - दरबार बदला। पर नहीं बदला तो कुछ अपवादों को छोड़कर महिलाओं की अपनी पहचान को जीवित रखने का संघर्ष। आज भी महिलाओं को अपनी पहचान बताने से पहले अपने पति, पिता और भाई की पहचान का सहारा लेकर खुद को साबित करना पड़ रहा है। प्रदेश में पंचायत चुनाव को घमासान मचा हुआ है। अधिकतर सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। इन आरक्षित सीटों पर प्रत्याशी बनकर समाज का प्रतिनिधित्व करने वाली महिलाओं के पोस्टर बैनर को देखकर मन बड़ा दुःखी है कि उनके नाम से पहले उनके पिता, पति और भाई का नाम है लिखा है कि उनके आधार पर ही उन महिलाओं को वोट दिया जाए! देश को आजाद हुए आठ दशक होने वाले हैं। सात दशक हमारे संविधान को होने वाले हैं पर हासिल क्या है? शून्य। सत्ता और सरकार को चाहिए कि ऐसी व्यवस्था तो बनाए कि महिलाओं को अपने अस्तित्व के साथ-साथ अपने परिचय को बचाए रखने के लिए दूसरों का सहारा न लेना पडे।