मौत का सफर - मुखिया बेखबर

देवाल से 30 किमी दूर बलाण-हिमानी मोटर मार्ग पर मैक्स के गहरी खाई में गिरने से दस लोगों की जान जाना कोई नई बात नहीं है। हर माह इस तरह की खबरें हमारी नजरों के आगे से कुछ यूं गुजर जाती है जैसे कुछ हुआ ही नहीं और फिर हम अगली सुबह नए सफर पर निकल जाते हैं। आखिर बेमौत मरते लोगों की जान इतनी सस्ती कैसे हो गई कि दुर्घटना पर दुर्घटना होती जा रही हैं और हम कोई सबक लेने को तैयार नहीं हैं। इससे पूर्व टिहरी गढ़वाल के प्रताप नगर क्षेत्र में एक स्कूल वैन हादसे का शिकार हो गई थी जिसमें दस मासूमों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। उसके बावजूद भी कोई जागरूकता देखने को नहीं मिली। शासन प्रशासन खुद नींद में सो गए। साथ में हम भी होश में नहीं रहे।
आखिर इस तरह की लापरवाही के लिए पूरी तरह से सरकार को भी जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है क्योंकि जितनी जिम्मेदारी सरकार की है उतनी ही हमारी भी है।
पहाड़ी क्षेत्रों में अधिकतर सड़कों का हाल बेहाल है, सूचना तंत्र, मोबाइल कनेक्टिविटी का स्तर का आलम क्या है यह किसी से छिपा नहीं है। देवाल की घटना इसका प्रमाण है कि वास्तविकता क्या है? यातायात व्यवस्था की कोई निश्चित व्यवस्था तक नहीं है ऐसे में जहां एक आद वाहन हैं भी उनमें भीड़ भड़का होना लाजमी है। क्योंकि घर जाने की जल्दी तो हर आदमी को रहती है। अगर वह उन वाहनों में सफर न करे तो उसे स्पेशल बुकिंग करना पडेगा। 
इन सबके होते हुए अगर पलायन नहीं होगा तो क्या होगा। जहां घायलों को सुविधाओं के अभाव में समय रहते ईलाज नहीं मिल पाता और उनकी जान चली जाती है।
किस हादसे के दोषी को क्या सजा हुई यह तक फाईलों में दबकर रह जाता है सबक लेना तो बहुत दूर की बात लगती है।
ऐसे हादसों को रोकना है तो जनता को खुद ढाल बनना पड़ेगा, कहां क्या गलत है उसके खिलाफ एक सुर में आवाज उठानी होगी, सड़कों में गढ्ढे हैं तो सम्बन्धित प्रतिनिधियों, अधिकारियों, कर्मचारियों से हाथ पकड़ कर काम करवाना होगा। यदि ऐसा नहीं किया जाता है तो हादसों को रोकना नामुमकिन है। हम सिर्फ अफसोस जता सकते हैं उसके अलावा कुछ नहीं कर सकते हैं। भविष्य शंकाओं से घिरा हुआ है कहना मुश्किल है कि क्या होने वाला है। ऐसे में एक सूत्र बांध लीजिए "आज नहीं तो कभी नहीं" और इसी के आधार पर काम कीजिए कब तक बेमौत मरते अपनों से लिपटकर आंसू बहाते रहेंगे।