कांग्रेस आज जिस हाशिए पर खड़ी है उससे बाहर आने के लिए उसे ऐसी संजीवनी की जरूरत है जो उसे नई ऊर्जा, शक्ति और पहचान दिला सके। हालिया हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनावों में बेशक कांग्रेस को बहुमत मिला है पर कांग्रेस को यह भी समझना होगा कि अर्श से फर्श पर पहुंचाने में भी उन्हीं नेताओं की अहम् भूमिका रही है जिनकी आज जयजयकार कर रहे हैं। हरियाणा में दो बार सरकार रहने के बाद भी कांग्रेस को पिछले चुनाव में मात्र 15 सीटों पर संतोष करना पड़ा तो कहीं न कहीं इससे साफ जाहिर होता है कि प्रदेश के चुनावों में चेहरे देखकर जनता अपना समर्थन तय करती है सिम्बल देखकर नहीं। इसका उदाहरण हालिया चुनाव हैं।
2022 की शुरुआत में उत्तराखंड में भी विधानसभा के चुनाव होने हैं ऐसे में उत्तराखंड में वापसी करना कांग्रेस के लिए ज्यादा कठिन नहीं होगा यदि वह अभी से कुछ चेहरों को फ्रंट लाईन में रखकर कदम बढाए। वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष बेशक बहुत सिम्पल व्यक्तित्व हैं परंतु उनकी स्वीकार्यता पूरे प्रदेश में न के बराबर है। और जो दिग्गज थे वो पहले ही भाजपा में पलायन कर गए थे अब उनकी वापसी लगभग तब तक तो शून्य है जब तक हरीश रावत सक्रिय राजनीति में उपस्थित हैं। ऐसे में कांग्रेस के पास गिने-चुने दो चार नेता बचें हैं जो प्रदेश स्तर के हैं उनमें इन्दिरा ह्देश, मंत्री प्रसाद नैथानी, दिनेश अग्रवाल, हीरा सिंह बिष्ट, गणेश गोदियाल, किशोर उपाध्याय, सूर्यकांत धस्माना ही हैं जो प्रदेश पार्टी के मुख्य चेहरे बन गए हैं। इन्दिरा ह्रदेश और हरीश रावत के आंकड़े हमेशा अनमिले रहे हैं जिससे इन्दिरा ह्रदेश भी ऐसा चेहरा नहीं बन सकता है जिसे पार्टी की कमान सौंपी जाए! मंत्री प्रसाद नैथानी भी देवप्रयाग विधानसभा से बाहर अपना कुछ खास वर्चस्व नहीं बना पाए जबकि वह शिक्षा मंत्री जैसे अहम् पद रहे हैं। दिनेश अग्रवाल को पहाड़ और मैदानवाद का अंतर ले डूबा। वो भी पहाडियों के बीच अपनी पहचान बनाने में असफल सिद्ध हुए हैं।
हीरा सिंह बिष्ट भी बेदाग छवि के नेता हैं परंतु उनका भी पार्टी के कुछेक बड़े नेताओं से आंकड़ा फिट नहीं बैठता जिससे उनके लिए भी प्रदेश नेतृत्व की राह आसान नहीं है। किशोर उपाध्याय पहले भी पार्टी के अध्यक्ष रह चुके हैं परंतु बहुत छोटी कार्यशैली के चलते वो टिहरी और देहरादून के बीच फंसकर रह गए में है। सूर्यकांत धस्माना दबंग छवि और एक अच्छे नेता होने के साथ साथ नए युवाओं के आईकाॅन हैं परंतु उनकी छवि पर लगा एक दाग धोना उनके लिए बहुत मुश्किल हो जाएगा। हो सकता है उस समय परिस्थितियां कुछ ऐसी रहीं हो परंतु उसकी वजह से सूर्यकांत धस्माना का राजनीतिक सफर की राह बहुत कठिन हो गई है।
कांग्रेस के पास एक शख्स ऐसा बचता है जिसकी युवा, महिला, बुजुर्गों पर अच्छी पकड़ के साथ-साथ साफ सुथरी छवि है। वह है गणेश गोदियाल। प्रदेश हित में, सर्वसमर्थन और हमेशा सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर कांग्रेस को नई ऊर्जा और दिखाने का काम गणेश गोदियाल के अतिरिक्त फिलहाल दूसरा आॅप्शन उपलब्ध नहीं है। यह सब कांग्रेस के रहनुमाओं पर निर्भर है कि वो किस कंधे पर सर रखकर सहारा खोजते हैं। परंतु कांग्रेस खुद को विपक्ष की भूमिका में भी जीवित रखने के लिए नए दृष्टिकोण और सोच को ध्यान में रखते हुए मजबूत यंगिस्तानी चेहरों को आगे बढ़ाना आज के दौर की मांग है। तभी कुछ बात बन पाएगी अन्यथा तू डाल डाल मैं पात पात, न तू कुछ करे न मैं कुछ करूं, बस काम की बात करें और यूं ही समय बिताते रहें।
यह है कांग्रेस की संजीवनी