डाँडी-काठयूं तै लांगी, बादलू का बीच उड़ी
सुपिन्यों मा एैजा तू, यूं कालि रात्यूं मुखड़ी दिखैजा तू
बरखा को झुमणाट हूंदा,
चूड़यूं को छुमणाट सुणेदा
बिजली की चमच्यट मा तेरी,
दत्युण्यु को दिपद्यट देखेंदा
सोड़ा-बथौ मा उड़ी, एैजा तु एक घड़ी
मन तै बुझैजा तू, यूं कालि रात्यूं मुखड़ी दिखैजा तू।
काला बादल घेरयोंदा
लटुल्यू की याद औंदा।
रंग-बिरंगी कमाण,
नथुली तेरी दिख्योंदा
पैनी नाक विसार, गौला मा चन्द्राहार
याद दिलैजा तू, यू कालि रात्यूं मुखड़ी दिखैजा तू।
सरग गगड़ांद जब
जिकुड़ी घवड़ांद तब,
चोली सी यो परणी
पाणी कु तफड़ांद तब
बरखा का दीडौमा भिजी, गात की आंगी रूझी
मन तै सेलेजा तू, यूं कालि रात्यू मुखड़ी दिखैजा तू।
रौला-बौला गदीना,
विकराल ह्वेई गैना।
नी लगी सकदू छाला,
आज मी तेरा बिना।
प्यार कि पैलुड़ी फेंक, मी तैं अफु जनै खैंच
छाला लगैजा तू, यूं कालि रात्यूं मुखड़ी दिखैजा
तू ..............................