हे भुला तू लुकि न जई इस्कूला का बाटा मा
ज्वन्नी की उमर मा भुला रैलि निथर घाटा मा
पढ़न लेखण मा जैन भी गयेल काया
दुन्यां कि रल्वल् मा वो भी सुदि रैलि गाया
ई च बगत सभलणों को रौणो भली चांट मा,
ज्वन्नी की उमर मा भुला रैलि निथर घाटा मा
भारि बड़ो पाप लगद, इस्कूल जु नि जांदा
पढ़न मां जु इनै उनै, अपड़ो ज्यू चुरांदा
अपड़ा बडौ तै नि देखदो, रौंद ठाट-बाट मा,
ज्वन्नी की उमर मा भुला, रौंद बडा घाट मा।।
ये च उमर भलो-बुरो सोचि-समझि चलण की
खौरि खैकि मेहनत ला भलो नौनो वणन की
भूलि जा तु अबरि कख छै मोल मा या माटा मा
ज्वन्नि की उमर मा भुला रैलि निथर घाटा मा
पढ़ली-लेखलि सुखी रैलि, नौ कमैलि दुन्या मा,
कुल को उद्धार कैलि, तबि च फेदा बचण मा।
जिन्दगी को बाटो टेड़ो विरड़ि, ना ये बाटा मा,
ज्वन्नि की उमर मा भुला, रैलि निथर घाटा मा।
ब्वै-बाबू की सेवा कनी, ब्वल्यू मन्नो धर्म चा
गुरु जनों कि षिक्षा मनी, सबसे बड़ो कर्म चा
यूं का ब्वल्यां पर जु जैलि, सुखि रैलि दिन रात मा
ज्वन्नि की उमर मा भुला रैलि निथर घाटा मा
विद्या-माता कि पूजा जै भुला न काया,
देवी-द्यवतौ न भी वैं तैं आषीश द्याया।
यो पवित्र वाटो च, तु रैड़ि न ये बाटा मा,
ज्वन्नि की उमर मा भुला रैलि निथर घाटा मा।
भलि संगत मा जू भि रौन्द भलो ही बणदा
बुरौ की संगत मा रैकि, क्वी भि नी गणदा
हरकि - फरकि देख आज को च तेरा साथ मा
ज्वन्नि की उमर मा भुला रैलि निथर घाटा मा।
दाना का ब्वल्यां अर औंला का स्वाद मा,
कनि मिठास हंूद भुला पता लगद बाद मा।
यूं को ब्वल्यूं तू भि मनलि रैलि अपणा ठाट मा,
ज्वन्नि की उमर मा भुला रैलि निथर घाटा मा।।
दाना को ब्वल्यूं अर औंला को स्वाद