आजाद हिन्द फौज 

1941 में कैप्टन मोहन सिंह व ज्ञानी प्रीतम सिंह मेजर पफूजीहारा के सुझाव पर स्वतंत्राता लीग के रूप में प्रथम आजाद हिन्द पफौज का निर्माण किया गया। 
1942 में रास बिहारी बोस को टोकियो में इसकी अध्यक्षता सौंपी गयी। 
किन्तु 1943 में कैप्टन मोहन सिंह को जापानी खुपिफया एंजेसी द्वारा गिरफ्रतार किए जाने के कारण स्वतंत्राता लीग का अंत हो गया। 
1943 में सिंगापुर में रास बिहारी बोस व सुभाष चन्द्र बोस द्वारा इसका पुर्नगठन कर इसे आजाद हिन्द पफौज का नाम दिया गया। नेताजी ने इसी समय दिल्ली चलो का नारा दिया। 
21 अक्टूबर 1943 को नेताजी ने बर्मा में आजाद हिन्द सरकार की स्थापना की। इस सरकार को 9 देशों द्वारा मान्यता दी गई थी। 
आजाद हिन्द पफौज ने 1943 नवम्बर में अण्डमान निकोबार पर कब्जा किया व उन्हें शहीद व स्वराज नाम दिया। 
1944 में आजाद हिन्द पफौज ने अंग्रेजों को अराकान के यु( में पराजित किया तथा उन्होंने आजाद हिन्द राष्ट्रीय बैंक की स्थापना की। 
अगस्त 1944 में नेताजी ने गांधी जी को रेडियो सम्बोधन में राष्ट्रपिता कहा, किन्तु 1945 में जापान पर परमाणु बम गिरने के परिणामस्वरूप आजाद हिन्द पफौज के सभी सैनिक गिरफ्रतार कर लिए गए तथा एक विमान दुर्घटना में नेताजी की मृत्यु हो गयी। 
1945 में आजाद हिन्द पफौज के अधिकारियों जनरल शहनवाज खां, प्रेम सहगल व गुरूदयाल सिंह ढिल्लो पर लाल किले में मुकदमा चलाया गया। 
इस मुकदमे की पैरवी भूलाभाई देसाई, तेजबहादुर सप्रू, अरूणा आसपफ अली, पं. जवाहर लाल नेहरू व कैलाश नाथ काटजू प्रमुख थे। 
इन्हें पफांसी की सजा दी गई, किन्तु भारी जन विरोध के चलते लार्ड वेवल ने उन्हें मुक्त कर दिया।