अधर में उत्तराखंड

उत्तराखंड में पलायन  ये शब्द  पिछ्ले 18 वर्षों से सरकारी फाइलों और उत्तराखंड की राजनीति में खो गए हैं। हमारे यहां पलायन आज एक गंभीर समस्या का रूप ले चुकी है लेकिन समय समय पर उत्तराखंड में सरकारों और राजनीतिक दलों द्वारा पलायन पर अपनी सहूलियत के हिसाब से राजनीति की जाती रही है और आज भी हो रही है। हमारे पड़ोसी राज्य हिमाचल का उदाहरण हमारे सामने है, हिमाचल ने पलायन को ही वरदान साबित किया है। क्या हम हिमाचल से सीख नहीं ले सकते हैं? ज़रूर ले सकते हैं लेकिन हमारे यहां राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव है और जिस दिन हमारे राज्य में राजनीतिक इच्छाशक्ति प्रबल होगी पलायन की समस्या हमेशा के लिए खत्म हो जायेगी। आज स्थिति यह है कि हमारे पहाड़ी जिलों में गांव के गांव खाली और बंजर पड़े हैं और हमारे पहाड़ी जिले पौड़ी गढ़वाल पर पलायन की मार सबसे ज्यादा पड़ी है। हमारे यहां पलायन की समस्या जो आज इतनी विकट हो चुकी है  ये हमारी सरकारों की सबसे बड़ी नाकामी है। क्या हमारे पहाड़ों में लघु एवं कुटीर उद्योग जैसे मसाले मोमबत्ती डेयरी उत्पाद और कई अन्य लघु उद्योग स्थापित नहीं किये जा सकते हैं? आज हमारे युवा अपने राज्य को छोड़कर महानगरों में दो जून की रोटी के लिए संघर्ष कर रहे हैं और हमारे माननीयों की मौज हो रखी है। हां उत्तराखंड राज्य बनने से अगर किसी को लाभ हुआ है तो वह हमारे माननीय हैं अच्छा खासा वेतन और ढेर सारी सुख़ सुविधाएं। हम उत्तराखंड वासियों ने अपने राज्य के लिए अपने सर्वांगीण विकास के लिए जो स्वप्न देखे थे वह आज भी स्वप्न ही हैं। समय समय पर हमारी सरकारें पलायन को रोकने के लिए नीति निर्माण और आयोग बनाते रहे हैं लेकिन नतीजा हम सबके सामने है हम जहां 18 वर्ष पहले थे आज भी वहीं खड़े हैं। जहां तक हमारे राज्य में सरकारी सेवाओं में नियुक्ति का सवाल है तो अभी तक कोई भी नियुक्तियां भ्रष्टाचार से अछूती नहीं रहीं हैं सरकारी विभागों में तमाम पद रिक्त पड़े हैं लेकिन भर्तियां नहीं हो पा रही हैं और जो थोड़ी बहुत  हो भी रहीं हैं वह हाई कोर्ट में अटक जाती हैं। हमारे लोक सेवा आयोग का क्या हाल है ये तो आप अच्छी तरह से जानते हैं। पिछली बार पीसीएस की भर्ती कब हुईं याद भी नहीं क्योंकि कई साल बीत गए हैं। हमारे पहाड़ों में  कई प्राइमरी स्कूलों में दो अध्यापक और एक छात्र है, जूनियर हाईस्कूल इंटमीडिएट स्कूलों में भी गिनती के बच्चे रह गए हैं। हमारे पहाड़ों में स्वास्थ्य सेवाओं का क्या हाल है ये सब हम अच्छी तरह से जानते हैं अस्पतालों का बहुत बुरा हाल है। हां सबकुछ अगर ठीक है तो हमारे नेताओं के लिए।