अधिकारियों के आगे नतमस्तक माननीय

जब माननीयों की ही नहीं  चलती तो आम आदमी कि क्या औकात होगी । अंदाजा लगाया जा सकता है । अधिकारी लोग अपने काम को करने के लिए बेशक कोई  नियम, आडिट का झंझट न देखें पर जब दूसरे के काम करने की बारी आती है उन्हें सब नियम-कानून याद आ जाते हैं!!!  और तो और उन्हें यह भी  याद रहता है कि इसमें आडिट आब्जेक्शन आ सकता है!  अपने काम करने के लिए छः साल का काम बेशक एक महीने में करना हो पर जब दूसरे की बारी आती है तो यहां भी  वह समय का रोना  रो देते हैं कि यह तो हो ही नहीं  सकता है इसमें बहुत समय लगेगा!!!  
हद होती है किसी बात की । ऐसे अधिकारियों को सबक सिखाया जाना चाहिए,  जो एक माननीय के सामने आराम से कुर्सी पर बैठे हुए हैं!!  कम से कम उस जनता का तो सम्मान कीजिए जिसके टैक्स से  आपको तनख्वाह मिल रही है यह प्रतिनिधि उन्हीं के द्वारा चुने गए हैं । इस तरह की परंपरा को बढावा देना कतई ठीक नहीं है!!!