अमर - प्रेम
ब्वै-बाबू को अमर प्रेम च, भाग्यूं तैं मिलदा जीवन मा
जो क्वी ये तैं समझि नि सकदा, छन अभागी वो जग मा।
छोटा वटीक पालि-पोसी की देखा कनी खौरी खांदा,
नौना - बालों का सुख-दुःख मा, सैरी उमर कटै जांदा।
ब्वै-बाबू का छौंद ही रौंद नौन्यू कु मैती घर प्यारो,
क्वी कै तैं भी कुछ नी दींदा, केवल प्रेम-मात्र सारो।
निर्मेत्यूं की आंख्यू का आंसू देखिकी कलेजि कटे जांदा
ब्वै-बाबू का बिना मैत मा, उपरी सी पंछी टपरांदा।।
नाती-नतेणा कुटुम घनेरो, स्वर्ग ही यूं कू बणि जांदा
पूत कुपूत जो ह्वै गे क्वी त स्वर्ग ही नरग मा बदल्यांदा
जीवन सुफल सुपूत ही करदा खौरि विचरद सुख दींदा
जनम-जनम का पुण्य क्मांदा, यूं की षुभ आषिश लींदा
भुला-भुल्यूं अन्धों की लाठी छयां आज बटि प्रण कारा,
ब्वै-बाबू तैं दुख नी द्यूला कबि, ऊंको ब्वल्यूं अंठ धारा।
यखी मा हूंद भलो नाम अर कुल को नाम भी ऊंचों,
पित्र-भक्तु मा तुमरो नाम भी देवलोक तक पौंछों।।