कभी हम महानगरों में स्कूलों की आपसी रंजिश की घटनाओं को टीवी और अखबार के माध्यम से पढ़कर अफसोस जताते थे कि कैसी व्यवस्था, कैसा सिस्टम है ऐ जो छोटे छोटे बच्चे को खुलेआम अपराध की गलियों में झोंक रहा है? जिनके हाथों में कागज कलम होनी चाहिए वे इतनी क्रूरता के वश में कैसे आ गए? इतनी महंगी स्कूलें, भारीभरकम फीस और दिल खोल दिखावे के आगे नैतिकता क्यों शून्य हो रही है! किताबी ज्ञान का क्या अचार बनाएंगे, जब तक बच्चों को सामाजिकता, नैतिकता, आपसी प्यार प्रेम और सौहार्द से जीना न सीखा पाए? आज यह सब उत्तराखंड में होने लगा है!
उत्तराखंड एक देवभूमि है, परंतु पिछले पांच सात सालों में स्कूलों में लगातार बढ़ रहे बाल अपराध की घटनाओं से हम कोई सबक क्यों नहीं ले पा रहे हैं? क्यों हमारी शिक्षा प्रणाली लगातार जूर्म के साए में कैद हो रही है? क्यों बालमन इतना क्रूर और गुस्से से भरा नजर आ रहा है? आखिर भविष्य संवारने का प्रयास क्यों गर्त में जा रहा है? आपसी मेलजोल, प्यार प्रेम, अनेकता में एकता सब एक स्वप्न से क्यों लग रहे हैं?
हमारी देवभूमि को ऐ किसकी नजर लग रही है जिसकी शांत वादियां लगातार अपराध और अपराधियों की पनाहगार बन रही है!
जागरूक बनिए, अपनी जिम्मेदारी निभाईए और इस नई बाल अपराध की प्रवृत्ति को रोकने में अपना सहयोग कीजिए और भविष्य को संरक्षण प्रदान कीजिए अन्यथा अपने जिगर के टुकड़ों को तडपते बिलखते मजबूर होकर देखने के सिवाय कुछ नहीं कर सकते।
©सुनील सिंह चौहान
बालमन क्रूर क्यों