बदरीनाथ

नगाधिराज हिमालय की गोद में तथा अनेक हिमानी शिखरों एवं नर-नारायण पर्वतों के मध्य भू-बैकुंठ बद्रीनाथपुरी में भगवान बद्री विशाल का भव्य मंदिर है तथा मंदिर के बायें पाश्र्व में युगों से प्रवाहित पतित वेगवती हिमानी अलकनंदा है, जो मानव की धार्मिक चेतना और उसके आध्यात्मिक स्रोत की प्रेरणादायिनी रही है। 
बदरीनाथ मंदिर, देश की प्राचीन संस्कृति एवं भावनात्मक एकता तथा अटूट श्र(ा-सम्मान का महत्वपूर्ण प्रतीक है। दक्षिण भारत के नंबूदरीपाद ब्राह्मण ;मुख्य पुजारी रावलद्ध ही बदरीनाथ मंदिर के पूजा-श्रृंगार के अधिकारी हैं। भगवान नारायण, जिनकी नाभि-कमल से प्रजापति ब्रह्मा की उत्पत्ति हुई, का निवास होने के कारण ही पुराणों में सर्वश्रेष्ठ तपोभूमि बद्रिकाश्रम और चारों धामों में श्रेष्ठ धाम बदरीनाथ कहा गया है-
बहूनि संति तीर्थानि, दिवि भूमि रसासु च। 
बदरी सदृशं तीर्थ, न भूतो न भविष्यति।। 
बद्रीनाथपुरी )षिकेश से लगभग 300 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। मंदिर से कुछ हटकर नीचे अलकनंदा के पाश्र्व में गर्म जलधारा 'तप्तकुंड' है। समीप ही श्रा( तीर्थ ब्रह्मकपाल, प्र“लादधारा, कूर्मधारा, नारदकुंड, )षिगंगा, शेषनेत्रा तथा चरणपादुका आदि तीर्थ हैं। बदरीनाथ से तीन किलोमीटर की दूरी पर सीमांत जनजाति ग्राम माणा, मातामूर्ति का मंदिर, व्यास गुपफा, भीमपुल तथा केशवप्रयाग है। विष्णु भगवान, नर-नारायण आदि देवताओं की मूर्तियां बदरीनाथ मंदिर में हैं। मंदिर परिक्रमा में शंकराचार्य, लक्ष्मी जी का मंदिर तथा देवी-देवताओं की मूर्तियां हैं और तप्तकुंड के पास छोटा शिवालय भी है।