हमारे यहां जहां कभी महिलाओं को सर्वोच्च स्थान दिया जाता था और कहा जाता था कि जहां नारियों की पूजा की जाती है देवताओं का वास भी वहीं होता है और कहा भी क्यों न जाये?जहां की महिलाओं ने विश्व स्तर पर अपना लौहा आज नहीं बल्कि उस समय मनवाया हो जब कि संसार में तकनीकी का कोई ऐसा माध्यम मौजूद न था जब आसानी से एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंच बनाई जाये। अलग-अलग क्षेत्रों में महिलाओं ने वो मुकाम हासिल किया है जिनकी शायद हमारा पुरूष समाज मात्रा कल्पनाभर कर सकता है। महिलाओं ने हमारे देश को विश्व पटल पर एक नई पहचान और नया स्वरूप दिलाने में जो भूमिका निभाई है उसके बदले हमारे समाज ने उन्हें सिपर्फ अपनी दबंगई के आगे नतमस्तक होने के सिवा कुछ नहीं दिया है। - विनीता चैहान
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्रा में चलती बस में हुई सामूहिक बलात्कार तथा नृशंसता की घटना ने सजीव प्राणियों की अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया है। जिंदगी के लिए संघर्ष कर रही युवती के साथ जो कुछ हुआ उससे किसी के भी रोंगटे खड़े हो जाएं। क्या महिला को भोग विलासिता की वस्तु मानकर उसे हर जगह घुट-घुट कर जीने के लिए मजबूर करना क्या अपने आप में वाकई मर्दांनिगी है, नहीं यह तो कायरों का काम है। दिल्ली में हुई दरिंदगी और अत्याचार के जितने दोषी वो छः कायर हैं उससे ज्यादा दोषी हमारा समाज और संस्कार हो गये हैं जहां मानवता और रिश्तों का कोई महत्व नहीं रह गया है। जिसे देखो वह सिपर्फ और सिपर्फ अपने तक की बात करने और करवाने में व्यस्त रहता है। स्त्रिायों को हमेशा भोग विलासिता की वस्तु समझने वाले हमारे पुरूष समाज पर धित्कार है जिसने स्त्राी की महत्ता को दरकिनार करते हुए सिपर्फ अपने स्वहित को सर्वोपरि मान रखा है और जिसका परिणाम हमारे सामने ऐसे जघन्य कृत्यों के रूप में आता है। समाज में घटित होने वाली किसी भी ऐसी विभत्स घटना जो आम आदमी के रोंगटे खड़े कर दे के पीछे जितना हमारा समाज दोषी है उतना ही दोषी हमारी न्याय प्रणाली और सिस्टम भी है। कानून का पालन कराने वाली संस्थाएं तथा हमारी न्यायिक प्रणालियां बहुत ही खस्ता हालत में हैं। इस प्रकार के अमानवीय जुर्म शायद इसलिए घटित होते हैं कि हमारी न्यायिक प्रणाली और सुस्त कानून व्यवस्था के होते हुए वे आसानी से बच निकलते हैं। शायद इसलिए भी कि तफ्रतीश, मेडिकल जांच और अदालतों का सामना करते-करते पीड़ित स्वयं ही हार जाते हैं या पिफर समाज के पैरोकार उन्हें मानसिक तौर पर इतना प्रताड़ित कर देते हैं कि वे हादसे से उभरने में अक्षम हो जाते हैं। इन सभी परिस्थितियों से निपटने के लिए हमें बेहतर कानून की जरूरत है और शायद इतना सख्त कानून की यदि एक बार किसी अपराधी को उसके किये की सजा कड़ी कानूनी प्रक्रिया के तहत मिल जाये तो यह ओरों के लिए एक नज़ीर बने और वे किसी भी ऐसी घटना को अंजाम देने से पहले उसके परिणाम के बारे में सोचकर ही सहम जायें। और शायद उनके लिए ऐसी सजा हो कि वे भविष्य में किसी की भी तरपफ आंख उठाकर देखने के लायक न रहें।
ब्रिटिश अखबार द गार्जियन ने भारत को औरतों के लिए जी-20 के सभी देशों में बदतरीन जगह बताया है। महिला अधिकारों के लिए काम करने वाले सूचना व सहायता केन्द्र, थाॅमस रायटर्स ट्रस्ट लाॅ वीमेन के एक सर्वे के अनुसार, भारत महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक जगहों में आता है और इस श्रेणी में उसका साथ देने वाले अन्य देश हैं, अपफगानिस्तान, कांगो तथा सोमालिया। भारत में औसतन हर चालीस मिनट में एक महिला को देश में कहीं न कहीं अपरण और बलात्कार का निशाना बनाया जा रहा होता है। महानगरों की श्रेणी में तो दिल्ली शर्मनाक तरीके से बलात्कार की घटनाओं के मामले में सबसे आगे है। वर्ष 2007 से 2011 के बीच राजधानी में बलात्कार की 2620 घटनाएं दर्ज हुई थीं। इसकी तुलना में मुम्बई में 1033, बंगलूरू में 383, चेन्नई में 293 और कोलकाता में 200 वारदातें ही दर्ज की गई थी। इससे भी बदतर यह है कि 2002 से 2011 के बीच, राजधानी में ही बलात्कार के चार में से तीन मामलों में आरोपी बचकर निकल गए थे। 2002 से 2011 के बीच, यानी पिछले एक दशक में बलात्कार के 5337 मामलों में पफैसले आए थे और इनमें से 3860 मामलों में आरोपियों को या तो बरी कर दिया गया था या पिफर समुचित साक्ष्यों के अभाव में अदालतों ने छोड़ दिया। सजा दिए जाने का रिकाॅर्ड इतना खराब होने के चलते ही अपराधियोें के मन में अब कानून का कोई डर नहीं रह गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को निर्देश दिया है कि महिलाओं की हिपफाजत करने के लिए सभी जरूरी कदम उठाएं, जैसे सादा वर्दी में महिला पुलिस अधिकारियों को तैनात करना, सार्वजनिक परिवहन साधनों में क्लोज्ड सर्किट कैमरे लगाना और हैल्प लाईन स्थापित करना आदि। महिलाओं के खिलापफ ऐसे अमानवीय जुर्म करने वालों को जल्दी से जल्दी सजा दिलाने के लिए विशेष अदालतें कायम की जायं। साभ ही उनकी सजा ऐसी होनी चाहिए जो दूसरों को ऐसे अपराध करने से रोक सके और संभावित अपराधियों के मन मेें डर पैदा करने में समर्थ है।
पिफलहाल हम तो सिपर्फ यही चाहते हैं कि इस बहादुर बिटिया की जिन्दगानी को भगवान सदा अपने आर्शीवाद से बचाये रखे और दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा दिये जाने के साथ अन्य के लिए भी एक ऐसी मिशाल पेश की जाये जो महिलाओं को ईज्जत की नजरों के साथ देखने के उनकी रक्षा करने में भी अपनी अहम् भूमिका निभा सकें।
बस अब ओर नहीं!