बसंत

बसंत
रौतेलि डाँडयूं मा हरयली छेगे,
हिवांली कांठयूं की घुंगठी खुलीगे।
  रूणी छै जु ड़ाली हैंसण लगीनी,
  घुगती-हिलाँस बसण लगीनी।2
  पय्यां की डाल्यूं मा मौल्यार एैगे,
  सेरा की मीडोली खिलपत ह्नैगे।।


धरती को रूप कनो स्वाणो ह्नै गाया,
बनि-बनि का फूलू न ब्यौली सी सजाया 2।
झलकदी जून बिंदुली सी दिखेगे,
सूरिज षिषफूल चमकण लगीगे।।
  पंुगड़यूमा हलसियूं को दिन लगी गाया।
  धरती को किसाण बगछट्ठ ह्नै गाया, 2
  चैंरड़ी की धार बासुली बजीगे,
  नागू का सुराज पंचमी एैईगे।।


सैसुर की नौनी मैत्वड़ा एै गाया,
निर्मेती की नौनी खुदेण लगाया, 2
भरड़ी, ढौडा मा झुमैलो लगीगे
आंख्यू का आंसू न सैरी आंगी रुझीगे।
  गितार नौन्यू की टोली चैरां मा एैगे,
  जोडी-सौजंड़यू की चरखी सी बणीगे, 2
  छोटा-छोटा नौनों की फफराढ पड़ीगे
  रसीला गीतू न सैरो गौऊं रसेगे।