पिता- ना रो मेरी लाड़ी सुलाडी जा बेटी ससुरास
सदानी क्वी बेटी नी रैन्दी, ब्वे बाबू का पास।।
नौनी - कख मिललो मैं तैं पिताजी, ब्वै बाबू को प्यार
भुला- भुलियूं की खुद लगली, मैं तैं विरणा घर
पिता - ब्वै-बाबु की याद आली सासू-ससुरा जी देखी
भै-बैण्यूं की खुद लगली द्यूर-नणदू भेंटी।
नौनी - कन कै छोड़लो पिताजी, दगड़ों को साथ,
दिल भरी की आलो समलीकि, ऊंकी उलरया बात
पिता - तेरी दगड़यों न भी लाडी कभि पराया हूण,
विधाता की लेख च बेटी, अमिट नी हूण।।
नौनी - न रोवा बाबाजी, मांजी मैं द्यावा आषीश
मैं तै वुलांदी रय्यां मैत्वड़ा भै-बैणो का बीच।
पिता - सदा स्वागवन्ती रैई लाडी, पति चरणों की प्यारी
सासु - ससुर की सेवा धरम च, कुल को नौ संहारी।।