कुमाऊँ मंडल के प्रमुख देवस्थलों में जागेश्वर प्रसि( तीर्थ है। उत्तराखण्ड स्थित चार धामों ;श्रीबद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्राी तथा यमुनोत्राीद्ध के साथ ही जागेश्वर पांचवां धाम कहा जाता है। इस तीर्थ की गणना द्वादश ज्योतिर्लिंगों में की जाती है। इस देवस्थल में देव मंदिर तथा मूर्तियां दर्शनीय हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार यह भगवान शिव की तपस्थली है। यहां लगभग 25 मंदिर अपनी भव्यता के साथ-साथ पुरातत्व कला की दृष्टि से भी प्रसि( हैं, जिनमें 8वीं शताब्दी में निर्मित महामृत्युजंय का मंदिर सबसे प्राचीन है, जिसमें प्रथम शिवलिंग स्थापित हैै। पुरातत्व विभाग के सर्वेक्षणों के अनुसार यहां 150 मंदिर होने की पुष्टि हुई, जिनमें नवदुर्गा, सूर्य, हनुमान, कालिका, चंडिका, कुबेर, जगन्नाथ, वृ( जागेश्वर, कोटेश्वर, बटेश्वर, कालेश्वर आदि प्रमुख हैं। प्रायः सभी मंदिर केदारनाथ शैली से निर्मित हैं। अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ मोटर मार्ग पर 1870 मी. की ऊँचाई पर स्थित इस देवस्थल की अल्मोड़ा से दूरी 35 किलोमीटर है। वर्ष 2005 मंे केन्द्रीय पर्यटन विभाग ने जागेश्वर को ग्रामीण पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने हेतु चयनित किया है। वैशाख पूर्णिमा, श्रावण चतुर्दशी, कार्तिक पूर्णिमा तथा शिवरात्रि पर जागेश्वर में विशेष पूजा विधान है। आदिशंकराचार्य ने यहां शक्तिपीठ की स्थापना की थी। मन्दिर समूह से ऊपर जटागंगा है। इसी से शिव का अभिषेक किया जाता है।
बागेश्वर
यह देवस्थान मानसखंड गं्रथ में अग्नितीर्थ के रूप में जाना जाता है। अल्मोड़ा से 77 किलोमीटर गोमती, सरयू और अदृश्य सरस्वती के संगम पर सिंधुतल से 960 मीटर की ऊँचाई पर स्थित मार्कण्डेय मुनि की इस तपोभूमि को कुमाऊँ गजेटियर में 'वाक् ईश्वर' ;ईश्वर का वचनद्ध कहा गया है, जो कालांतर में बागेश्वर हो गया। यहां शिव का निवास होना बताया जाता है, परंतु कुमाऊँ में प्रचलित 'जागेश्वर-जागनाथ, बागेश्वर-बाघनाथ' उक्ति के अनुसार यह तीर्थ ब्याघ्रेश्वर नाम से प्रचलित था। जनश्रुति है कि बागेश्वर स्वयंभू होता है अर्थात् स्वयं ही प्रकट हुए हैं, किसी के द्वारा स्थापित नहीं हैं। जागेश्वर और बागेश्वर तीर्थों का महत्व एवं लोकप्रियता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि कुमाऊँ में यह कहावत प्रचलित है-'देवता देखणा जागेश्वर, गंगा नहाणी बागेश्वर'। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, महर्षि वशिष्ठ जब सरयू को लाने में उद्यमरत् थे तो नील पर्वत की शिला ब्रह्मकपाली पर मार्कण्डेय मुनि समाधि लगाए बैठे थे। इस कारण सरयू को वहीं रुकना पड़ा। वशिष्ठ की प्रार्थना पर भगवान शिव ने इस समस्या का समाधान किया। पार्वती गाय का रूप धारण कर मार्कण्डेय मुनि के सामने घास चरने का उपक्रम करने लगी और शिव बाघ का रूप धारण कर घोर गर्जना करते हुए गाय रूपी पार्वती पर झपटे। गाय जोर-जोर से रंभाती हुई मुनि की शिला की ओर दौड़ी। इससे मार्कण्डेय मुनि की समाधि भंग हो गई और वह गाय का बचाने दौड़ पड़े। इस बीच सरयू को रास्ता मिल गया। बाघ एवं गाय रूपी शिव-पार्वती भी मुनि के समक्ष अपने वास्तविक रूप में प्रकट हो गए। मुनि की प्रार्थना पर व्याघ्रेश्वर नाम से शिव इस स्थान पर निवास करने के लिए सहमत हो गये। जब शिव-पार्वती इस स्थान पर पधारे तो आकाशवाणी हुई, जिसमें शिव का स्तुतिगान हुआ। अतः यह स्थान वाक् ईश्वर या बागीश्वर ;बागेश्वरद्ध कहलाया।
प्राचीन गं्रथों में उल्लेख है कि यहां पर मार्कण्डेय )षि ने मंदिर का निर्माण कराया था और उसमें 'बाघनाथ' नाम से शिव की प्रतिमा स्थापित की थी। चंदवंशीय राजा लक्ष्मीचंद्र ने 1602 में यहां पर शिव के ब्याघ्रेश्वर रूप में अवतरित पुराण कथा से प्रेरित होकर बाघनाथ मंदिर का निर्माण कराया था। यह मंदिर प्रतिवर्ष जनवरी मास की मकर संक्रांति के अवसर पर लगने वाले प्रसि( उत्तरायणी मेले का केन्द्र है।
कालान्तर में कार्तिकेयपुर के कई राजाओं ने व्याघ्रेश्वर मन्दिर के रखरखाव एवं पूजा के लिए भूमि दान दी। नौवीं शदी मे कार्तिकेयपुर से निर्गत भूदेव का एक प्रस्तर अभिलेख बाघनाथ मन्दिर बागेश्वर से प्राप्त होने का उल्लेख है। बाघनाथ मन्दिर परिसर सहित विभिन्न मन्दिरों में लगभग छठी-सातवीं शती से दसवीं-ग्यारहवीं शती के मध्य बने प्राचीन देवालयों के अनेक अवशेष तथा प्राचीन प्रस्तर प्रतिमाएं रखी हुई हैं। इनमें उमा-महेश, विष्णु, सूर्य, दशावतार पट्ट, चतुर्मुखी शिवलिंग, गणेश, कार्तिकेय सहित कई प्रतिमाएं हैं।
आस्था के इस तीर्थ को काशी की भांति श्र(ास्थल की मान्यता प्राप्त है। बागेश्वर तीर्थ के रूप में भीलेश्वर पर्वत, पश्चिम में नीलेश्वर पर्वतश्रेणी, उत्तर में सूरजकुंड और दक्षिण में अग्निकुंड है। साहसिक यात्राओं यथा पिण्डारी हिमनद, कपफनी तथा सुंदरढुंगा ग्लेशियर का यहां से सुगतम मार्ग है। यहां से कौसानी, जिसे गांधी जी ने भारत का स्विट्जरलैंड कहा था, मात्रा 39 किलोमीटर है। 22 किलोमीटर की दूरी पर गरुड़घाटी के पास बैजनाथ नामक स्थान पर तैलीहाट मंदिर समूह ऐतिहासिक, धार्मिक तथा पुरातत्व की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है।
भगवान शिव की तपस्थली जागेश्वर