चंद वंश

700 ई0 में इलाहाबाद के निकट के कुंवर सोमचंद ने चंद वंश की स्थापना की। जनश्रुति के अनुसार सोमचंद बद्रीनाथ की यात्रा पर आए तथा कत्यूरी शासक ब्रह्मेदव ने अपनी पुत्राी का विवाह उनके साथ कर दी। कुछ समय पश्चात् सोमचंद ने संपूर्ण काली कुमांऊ पर अधिकार कर लिया तथा चंद वंश की स्थापना की। सोमचंद ने चंपावत के निकट राजबूगंा नामक स्थान पर एक किले का निर्माण करवाया। 
 इनके पश्चात् आत्मचंद ने राज्य का विस्तार किया, इनके पश्चात् पूर्णचंद शासक बने। इन्होंने कुमांऊ में एक रेशम कारखाना स्थापित करवाया। इसके पश्चात् बीणाचंद शासक, बना वह विलासी प्रकृति का था अतः इसके पश्चात् 879 ई0 में इस क्षेत्रा में पुनः खस राजाओं का अधिकार हो गया। चंद राजाओं के राजकुंवर वीरचंद खस राजाओं के भय से भाग कर नेपाल चला गया। खसों ने लगभग 200 वर्षों तक शासन किया। 
 1065 में राजा बीरचंद ने खस राजा को पराजित कर इस क्षेत्रा में पुनः चंद वंश की स्थापना की। बीरचंद के पश्चात् 28वीं पीढ़ी तक के राजाओं के विषय में कोई जानकारी प्राप्त नहीं हेाती। 1374 में गरूड़ ज्ञानचंद शासक बना, यह 1419 ई0 तक शासक रहा, इसने मुहम्मद तुगलक से अपनी सीमाएं व्यवस्थित करवायी। इनका शासन काल चंद राजाओं में सर्वाधिक रहा। इसके पश्चात् उद्यानचंद, विक्रमचंद, भारतीचंद, रत्नचंद आदि शासक बने। रत्नचंद ने चंदों को डोरी से स्वतंत्रा करने में सपफल रहा। 1488 में कीर्तिचंद शासक बना वह प्रथम प्रतापी राजा माना जाता है। 1555 से 1560 तक भीष्मचंद शासक रहा इसके समय सूरवंश के शासक इस्लाम शाह का शत्राु खवास खां ने कुमाऊँ में शरण ली। 
 1560 में बालो कल्याचंद शासक बना, इसने 1563 में खगमाराकोट ;खसियाडांडाद्ध नामक स्थान पर अल्मोड़ा नगर की स्थापना की तथा उसे अपनी राजधानी बनाया। 
 इसके पश्चात् रूद्र चंद शासक बना उसके समय मुगल सैनिकांे ने तराई भाबर पर आक्रमण किया तथा रूद्रचंद ने उन्हें पराजित कर इस क्षेत्रा से उन्हें भगा दिया। अतः अकबर द्वारा उसे लाहौर दरबार में बुलाया गया और उसे भाबर क्षेत्रा प्रदान किया गया। रूद्रचंद ने बीरबल को अपना राजपुरोहित स्वीकार किया। 
 रूद्रचंद के पश्चात् लक्ष्मीचंद शासक बना उसने गढ़वाल पर आठ बार आक्रण किये जिसमें से सात बार वह पराजित हुआ तथा आठवीं बार उसे आंशिक सपफलता प्राप्त हुई, इस यु( में गढ़वाली सेनापति खतुड़वा मारा गया जिसके उपलक्ष्य में कुमाऊँ क्षेत्रा में खतुड़वा त्यौहार मनाया गया और प्रतिवर्ष इसे मनाने की परंपरा आरम्भ की। 
 1638 में बाजबहादुर चंद अगला शासक बना। बहादुर की उपाधि उसे मुगल सम्राट द्वारा दी गई थी। इसके समय सुलेमान शिकोह ने कुमायुं में शरण मांगी थी, किन्तु राजा ने उसे अनेक उपहार देकर गढ़वाल क्षेत्रा में भेज दिया। इसके पश्चात् उद्योतचंद, ज्ञानचंद, जगतचंद, देवीचंद, अजीतचंद ;अजीत चंद के समय सम्पूर्ण शासन पूरणमल गैंड़ा के हाथों में रहा इस काल को गैंडागर्दी कहा जाता है।द्ध कल्याणचंद आदि शासक बने। कल्याणचंद के समय रूहेलों ने कुमाऊँ में लूटमार की तथा शिवदत्त जोशी के हाथों में रही। दीपचंद के पश्चात् मोहनचंद शासक बना इसके समय जोशी बंधुओं ;हर्षदेव जोशी, जयानंद जोशीद्ध ने गढ़वाल नेरश ललितशाह की सहायता से इस क्षेत्रा पर अधिकार कर प्रद्युम्न शाह को कुमायुँ का शासक बनवाया किन्तु 1786 में गढ़वाल क्षेत्रा में अव्यवस्था के कारण प्रद्युम्न शाह गढ़वाल वापस चले गए तथा मोहन चंद ने पुनः कुमाऊं पर आक्रमण किया और गद्दी प्राप्त की। 1788 में हर्ष देव जोशी ने उसकी हत्या करवा दी इसके पश्चात् शिवचंद गद्दी पर बैठा और तत्पश्चात् महेन्द्र चन्द। 1790 में हर्षदेव जोशी ने नेपाली सेना की सहायता से चंद वंश का अन्त करवाया गोरखा सेना चैतरिया बहादुरशाह, जगजीत पाण्डे, अमर सिंह थापा और सूरवीर थापा के नेतृत्व में इस क्षेत्रापर कब्जा किया।