डीजिटल की दुनिया में छोटे मझोले समाचार पत्रों के सामने अस्तित्व बचाए रखने का संकट पैदा हो गया है! जहां आज 460 मीलीयन भारतीय मासिक इंटरनेट उपभोक्ता हैं वहीं 400 मीलीयन से ज्यादा लोगों के पास स्मार्ट फोन है। ऐसी स्थिति में 32 मीलीयन से ज्यादा भारतीय डिजीटल आधारित समाचारों के अध्ययन को महत्ता देते हैं। इतने बड़े आंकड़े के साथ छोटे मझोले समाचार पत्रों के पाठकों का आंकड़ा क्या होगा सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। डीजिटल के दौर में इन समाचार पत्रों को भी आनलाईन सेवा देना जरूरी है, परंतु सीमित संसाधनों के चलते यह कैसे हो पायेगा इस प्रश्न ने एक विकट परिस्थिति खड़ी कर दी है।
पर अब राहत देने वाली खबर है कि विकट परिस्थितियों में इन समाचार पत्रों के लिए संजीवनी बनकर उभरी है गुगल की "नवलेखा" सेवा। भारत में वर्ष 2018 के अंत में लांच हुई यह योजना देश के अन्य हिस्सों से होते हुए उत्तराखंड भी आ पहुंची है।
गुगल द्वारा एक मुहिम चलाकर इन समाचार पत्र पत्रिकाओं को एक ऐसा प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराया जा रहा है जहां इन समाचार पत्रों के प्रतिनिधि आसानी से अपना कंटेंट आनलाईन डाल सकें और अपनी स्वयं की वेबसाइट चला सकें जिसे नवलेखा नाम दिया गया है। इसी क्रम में देहरादून के एक होटल में आज एक कार्यशाला का आयोजन किया गया था जिसमें दो सौ से अधिक समाचार पत्र पत्रिकाओं के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। जिसमें नवलेखा के उपयोग से लेकर वेबसाइट, हास्टिंग, गुगल एडसेंस आदि की जानकारी दी गई। इस दौरान एक क्वीज का भी आयोजन किया गया जिसमें विजेताओं को पुरस्कृत किया गया।
गुगल ने समाचार पत्र पत्रिकाओं के लिए नवलेखा रूपी संजीवनी लांच करके एक नया जीवनदान दिया है इससे कापीराइट, गुणवत्तापूर्ण, तथ्यों से परिपूर्ण तथा बहुपयोगी समाचारों को लिखने का क्रम बढेगा और समाचार पत्रों के प्रतिनिधियों में भी नित नई जिज्ञासा का संचार होगा। कार्यशाला में गुगल की तरफ से गिरिजा ने उपरोक्त जानकारी दी। इस अवसर पर राहुल कटारिया, मनन आनंद तथा सन्नी कुमार आदि उपस्थित थे।
छोटे मझोले समाचार पत्रों की संजीवनी नवलेखा