गढ़वाली भाषा को पाठ्यक्रम मे शामिल करने की शुरुआत एक महान कार्य है. अपनी बोली अपनी पहचान को बचाये रखने मे यह एक क्रांतिकारी पहल साबित होगी. गढ़वाली भाषा के विद्वानों ने इसे सहज़ रूप मे आयु के अनुसार तैयार किया है. छोटी कक्षा के बच्चों को चित्रों के माध्यम से भी आकर्षित किया गया है.
गढ़वाली भाषा के साहित्य प्रेमी, विद्वान जनों द्वारा जिलाधिकारी महोदय के समक्ष पाठ्यक्रम मे गढ़वाली भाषा को शामिल करने का निवेदन किया जिसे जिलाधिकारी महोदय ने उत्साह पूर्वक आगे बढ़ाने का निर्णय लिया. इसे पहले पायलट प्रोजेक्ट के रूप मे क्रियान्वयन करना था और एक ही ब्लॉक मे लागू किया जाना था. सालों से चल रहा प्रयास क्रियान्वयन की ओर बड़ा, समय ने साथ दिया मेहनत रंग लायी और पौड़ी जिले मे इसे सम्मिलित किया गया है. जिलाधिकारी रूद्रप्रयाग का भी इसमें महत्वपूर्ण योगदान था. अब अन्य जिलों मे भी गढ़वाली भाषा को पाठ्यक्रम मे शामिल किया जायेगा.
इस कार्य मे कुछ गढ़ पुत्रो का विशेष योगदान है जिनमे गढ़ रत्न श्री नरेन्द्र सिंह नेगी जी, श्री गिरीश सुन्दरियाल जी, श्री धर्मेंद्र नेगी जी, श्री रमेश बड़ोला जी, श्री मधुसूदन थपलियाल जी, डॉक्टर कुटज भारती जी, महेंद्र ध्यानी जी, रिद्धि भट्ट जी, शिवदयाल शैलेश जी, देवेंद्र उनियाल जी, मनोहर चमोली जी, नवीन भट्ट जी, हरीश जुयाल "कुटज" जी, ये सभी संपादन मण्डल मे थे. इसका सयोजक हमारे गणी भाई जी ने किया. इन पुस्तकों के चित्रकार श्री राकेश राका जी हैं. इन नामों मे कोई भी परिचय का मोहताज नहीं हैं, पूर्व मे भी इन्होने भाषा साहित्य के लिए अविस्मरणीय कार्य किये हैं. इस उपलब्धि के लिए सभी को बधाईया. कुछ ब्यक्तियों के नाम छूट गए हों तो माफ़ी चाहुँगा. एक बार फिर जिलाधिकारी महोदय पौड़ी और जिलाधिकारी महोदय रूद्रप्रयाग का धन्यवाद. डी ओ माध्यमिक पौड़ी श्री हरिराम यादव जी का भी आभार.