कुमाऊं में 1790 मंे मोहनचंद व 1804 में प्रद्युम्नशाह को पराजित कर संपूर्ण उत्तराखण्ड में गोरखा शासन स्थापित हुआ। अमर सिंह थापा व उसका पुत्रा रणजोर थापा गढ़वाल व कुमाऊं के राजा बने। गोरखा शासन काल को इस क्षेत्रा में गोरख्योल अथवा गोरख्याणी के नाम से जाना जाता है। इस काल में गोरखाओं ने आम जनता पर अनेक प्रकार के अत्याचार किए। तथा अनेक करों के बोझ तले जनता को दबा दिया गया। गोरखा शासकों ने स्यूंदीकर ;मांग निकालनेद्ध सुप्पू कर ;सूप पर करद्ध जैसे कर भी लगाए। किसानों से भी निर्धारित लगान से डेढ़ गुना अधिक लगान वसूला गया।
गोरखा शासन गढ़वाल क्षेत्रा में 12 वर्ष व कुमाऊं में 24 वर्षों तक रहा।
1815 में ब्रिटिश सेना ने लोभागढ़ी व खांलगा के यु( में गोरखा सेना को पराजित कर इस क्षेत्रा पर अधिकार कर लिया। 1816 की सगौली की संधि के पश्चात् नेपाल व भारत की सीमाए निर्धारित हुई तथा कुमाऊं तथा गढ़वाल के चमोली, पौड़ी आदि क्षेत्रों को ब्रिटिश राज्य में तथा टिहरी, उत्तरकाशी आदि क्षेत्रों को पंवार राजाओं को दे दिया गया
14 जुलाई 1815 को सुदर्शनशाह विलियम Úेजर के साथ श्रीनगर पहुंचे। तथा अलकनंदा पूर्वी तट ब्रिटिश गढ़वाल व पश्चिमी तट को टिहरी रियासत स्वीकार किया गया।
11 मई 1815 को एडवर्ड गार्डनर को कुमाऊं की व्यवस्था का प्रभार सौंपा गया। तथा टिहरी रियासत नरेन्द्रशाह को सौंप दिया गया। प्रारम्भ में ब्रिटिश गढ़वाल व कुमाऊं को एक ही कमिश्नरी माना गया।
गार्डनर के पश्चात् ट्रेल अगला कमिश्नर बना, इसे ब्रिटिश शासन का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। यह 1815 से 1835 तक कमिश्नर रहा, ट्रेल ने इस क्षेत्रा में आठ बार भूव्यवस्था करवायी इसके द्वारा 1880 की भूव्यवस्था इस क्षेत्रा में आज तक प्रमाणिक माना जाता है।
1839 में कुमाऊं व गढ़वाल दो पृथक जिले बना दिये गए। इस दौरान बेटन कुमाऊं कमिश्नर रहा। 1848 में बैटन के स्थान पर मेजर जनरल सर हेनरी रामजे को कुमाऊं का कमिश्नर बना। वह 44 वर्षों तक कुमाऊं का गर्वनर रहा।
अंग्रेजों ने इस क्षेत्रा में कुलीउतार, कुली बेगार आदि प्रथाएं आरम्भ किया।
गोरखा शासन और उत्तराखण्ड