हिल जात्रा

पिथौरागढ़ के सोरोघाटी का हिलजात्रा उत्सव मुख्यतः कृषकों तथा पशुपालकों का उत्सव है जो की नेपाल की देन माना जाता है। 
द हिलजात्रा 'हिल' और 'जात्रा' दो शब्दों से मिलकर बना है। हिल का अर्थ है सीमार वाली ;दलदलीद्ध जगह तथा जात्रा का अर्थ खेल या यात्रा अर्थात् दलदली जगह पर किए जाने वाला खेल हिलजात्रा या हिलयात्रा है। हिलयात्रा वर्षा में ही आयोजित किया जाता है। जब खेतों में पानी भर जाता है और धान की रोपाई हो चुकी होती है। 
द यह उत्तराखण्ड की विशिष्ट नाट्य शैली है जिसमें विभिन्न पात्रा लकड़ी के बड़े-बड़े मुखौटे पहनकर अभिनय करते हैं। इसमें घुड़सवार, सैनिक, झाडूवाला, मछेरा, दहीवाला, हलिया, बैलों की जोड़ी, धान रोपाई करती हुई पुतारियां, हिरन, चितल, नेपाली राजा, कुत्ता, भालू, नाई, भजन मण्डली, लछिया भूत आदि पात्रा होते हैं। 
द इसका आयोजन पिथौरागढ़ के कुमौड़, बजेटी, भूरभूड़ी, मेल्दा, खतीगांव, सिल, चमू, अगन्या आदि गांवों में किया जाता है। 
द्यवोरा यात्राः पिथौरागढ़ के कुछ भागों में मनाई जाने वाली इस देव यात्रा मंे ग्रामवासी साल-डेढ़ साल तक विभिन्न मन्दिरों, तीर्थों एवं गांवों में रात बिताते हुए अपनी यात्रा पूरी करते हैं। इस देव यात्रा में यात्राी रास्ते भर नंगे पांव चलते हैं। मार्ग में धयांण ;ब्याही गई बेटीद्ध अपनी सामथ्र्यानुसार देव यात्रियों को 'भात्तू' देती हैं।