कालीमठ की महिमा निराली
श्री केदारनाथ मार्ग पर गुप्तकाशी से दो किलोमीटर पर मस्ता चट्टी ;विश्रामस्थलद्ध है, जहां से सि(पीठ कालीमठ को मार्ग जाता है। 1380 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह स्थान जगदंबा के सि(पीठों में से एक है। पूरे देश में इसी प्रकार के 108 पीठ हैं। मान्यता है कि असुरों का संहार करने के उपरांत माँ काली ने खड्ग प्रहार से यहीं अपना प्रकट रूप विसर्जित किया था। कालिका की इस पवित्रा स्थली में पहुंचने के लिए मंदाकिनी नदी पार करनी पड़ती है। कालीमठ में प्रवेश करते ही मां कालिका के मंदिर तथा अन्य मंदिरों के कलशों पर पफहराती अरूण ध्वजायें माँ की शक्ति का बोध कराती हैं। आश्चर्य है कि माँ कालिका के मंदिर में कोई मूर्ति नहीं है, बल्कि एक रजत-मंडित वेदिका बनी हुई है। निकट ही मंडवा ;सरस्वतीद्ध नदी बहती है। मंदिर का परिवेश तथा आराधना प(ति स्थानीय विशिष्टताओं का बोध कराती है। मंदिर के बाहर सैकड़ों छोटे-बड़े घंटे-घड़ियाल टँगे हैं। महाकाली को स्थानीय भाषा में 'खाडै{कालिंका' कहा जाता है। वास्तव में मूर्ति के स्थान पर एक खड्डा है जो चांदी की मोटी शिला से ढका है। इस खड्डे में माँ काली को शाश्वत माना गया है। माता की पूजा इसी शिला पर होती है। चैत्रा व अश्विनी मास के नवरात्रों में यहां विशेष पूजा होती हैै। शारदीय नवरात्रों में सप्तमी को विशाल मेला लगता है। अष्टमी को दी जाने वाली बलि प्रथा अब समाप्त हो गई है। केदारखंड पुराण में इस पीठ का वर्णन मिलता है।
काली क्षेत्रा समादिष्टं प्रत्यक्षपफलदायकम।
श्रुयन्ते{द्यापि निर्घोषाः शंखमेटीमृदघगजा।।
;अर्थात् अनेक मोक्षदायक तीर्थों में काली क्षेत्रा प्रत्यक्ष रूप से पफलदायक है। वहां आज भी शंखनाद, मृदंग तथा अनेक वाद्यों के स्वर सुनाई पड़ते हैं।द्ध
कालीमठ की महिमा निराली