कैलास मानसरोवर यात्रा

प्रतिवर्ष जून के प्रथम सप्ताह से सितम्बर के अन्तिम सप्ताह तक चलने वाली इस यात्रा का आयोजन भारतीय विदेश मंत्रालय, कुमाऊँ मण्डल विकास निगम ;नैनीतालद्ध तथा भारत-तिब्बत सीमा पुलिस के सहयोग से होता है। यह स्थल चीन के कब्जे में है अतः प्रत्येक यात्राी के लिए बीजा जारी किया जाता है। 
द यात्रा दिल्ली से प्रारम्भ होकर मुरादाबाद, रामपुर, हल्द्वानी, काठगोदाम, भवाली होते हुए अल्मोड़ा पहुंचती है। अल्मोड़ा से कौसानी, बागेश्वर, चैकुड़ी, डीडीहाट होते हुए धारचूला पहुंचती है। धारचूला से लगभग 160 किमी. पैदल यात्रा के तहत तवाघाट, मांग्टी, गाला, बंुदी, गुंजी, नवीढांग ;भारत का अंतिम शिखर स्थलद्ध, लिपुलेख दर्रा ;भारत का अंतिम बिन्दुद्ध होते हुए तिब्बत में प्रवेश करते हैं। आगे मानसरोवर तक के लिए बस व पैदल दोनों साधनों ाकी व्यवस्था करती है। 
द इस यात्रा में एक व्यक्ति की यात्रा समयावधि लगभग 40 दिन की होती है। यात्रा के इच्छुक आवेदकों को दिल्ली में तमाम जांच से गुजरना पड़ता है। 
द कैलाश शिखर की बनावट शिवलिंग की तरह है। पर्वत के पत्थर काले हैं। यात्राी मानसरोवर झील में स्नान करते हैं, उसके बाद लिंगाकार कैलास पर्वत के चारों ओर परिक्रमा करते हैं जो कि लगभग 51 किमी. की गोलाई में है। 
द समुद्र से 22, 028 पफीट की ऊंचाई पर स्थित मानसरोवर झील की बाहरी परिक्रमा पथ 62 किमी. है। यहां कोई मंदिर या मूर्ति नहीं है। यात्रियांे को सरोवर के किनारे मिट्टी का शिवलिंग बनाकर पूजा करनी पड़ती है। कैलास से मानसरोवर झील की दूरी 32 किमी. है। 
द ध्यातव्य है कि 1962 के यु( से पूर्व यह यात्रा बिना बीज के होती थी। उस समय तीर्थयात्राी मुख्य रूप से धारचूला की व्यासघाटी से लिपुलेख दर्रा पार कर मानसरोवर पहुंचते थे। इसके अलावा पिथौरागढ़ जिले के मुनस्यारी के जोहार-घाटी के किंगरी-बिंगरी दर्रे और चमोली जिले के जोशीमठ के नीती-घाटी दर्रे से भी कैलाश मानसरोवर जाते थे। यु(ोपरान्त दोनों देशों के बीच 1981 में धारचूला तहसील की व्यासघाटी के लिपुलेख दर्रे से कैलाश यात्रा शुरू करने पर सहमति बनी जो बिना रूकावट के निरन्तर जारी है।