मौलाराम के वंशज 1658 में दिल्ली से श्रीनगर ;पौड़ी गढ़वालद्ध गये थे और यहीं पर 1743 में कवि एवं कलाकार मौलाराम का जन्म हुआ था। उन्होंने अपनी माता रामोदेवी से राम भक्ति का पाठ पढ़ा और चित्राकला गुरु रामसिंह से सीखा था। वे गढ़वाल नरेश के दरबारी चित्राकार थे लेकिन इनकी चित्राशाला श्रीनगर में थी। वे हिन्दी, पफारसी और संस्कृत के अच्छे विद्वान थे और इन तीनों भाषाओं में रचनाएं की हैं। उन्होंने अपनी रचनाओं के लिए ब्रज भाषा का भी प्रयोग किया है। 'गढ़ राजवंश' ब्रज भाषा की उनकी श्रेष्ठ रचना है। विद्वानों के अनुसार मौलाराम की रचनाओं की संख्या लगभग 25 हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख रचनाएं हैं-श्रीनगर दुर्दशा, मन्मथ सागर, अभिज्ञान शाकंुतलम का हिन्दी अनुवाद, )तु वर्णन, अपने बनाए चित्रों पर लिखी कविताएं आदि। इन्होंने मन्मथ पंत भी चलाया था।
मौलाराम के चित्रों को प्रसि(ि दिलाने में बैरिस्टर मुकुन्दीलाल का प्रमुख योगदान है। विश्व की प्रसि( आर्ट गैलरी 'बोस्टन म्ूयजियम' में इनके चित्रा गढ़वाल पेटिंग्स के नाम से प्रदर्शित हैं।
कौन थे मौलाराम