जखि वि देखदु इथैं-उथैं,
फर फतैं मेरि कुनलि कथैं।।
नजर धूमलि तुमरि जथैं,
फर फतैं मेरि कुनलि कथैं।।
हे कुनलि हे कुनली,
सुदि न मार भै तनि तु फली,
कमर देखेन्द ह्वकै सि कली
देखिक लोगु कि सुकद गली
गौंमा देखा भौं सारि जथैं, फर फतैं मेरि कुनलि कथैं
थौल तमासा जब वीरयांदा,
अगने अगने कुनलि जांदा
पिछनैइ घुरगुच्चो ह्वै जांदा
हिरणी सि कुतरद्वि लगांदा।
सट बौगा छूंद चरखी जथैं, फर फतैं मेरि .................
डांडयु मा जब कुनलि जांद
हिंसर, किनग्वड़ा, काफल खांद
देखी देखी की मन रस्यांद,
कै भवकी की ह्वलि स्य बांद
भम्वरा मरदा मनख्युं जथै फर फतैं मेरी ..................
कुज्याणि कैकि चिट्ठि बंचदा
किनग्वैडे़ कांडयुं मा नचदा
झंवरयुं को छमछयाट मचदा
चलक बलक इथैं उथैं, फर फतैं मेरी .......................
हे कुनलि कख जि जौलो
त्वै बिना कनमा जि रौलो
तेरो बिछोड़ कनमा सौलो
झट्ट बतौं मी कव जि औलो
कख देखेली इथैं-उथैं, फर फतैं मेरि.........................
जख वि देखदु ....................................................
कुनलि़