लोकचित्र एक प्रस्तुति

चित्रकला की गढ़वाल शैली के अलावा राज्य में विभिन्न मांगलिक अवसरों पर ऐंपण ;छिपणद्ध, ज्यूंति मातृका, प्रकीर्ण, पौं, डिकारे, पट्ट आदि लोक चित्रा बनाने की परम्परा है। इनका संक्षिप्त वर्णन अधोलिखित है। 
ऐंपण ;छिपणद्धः ऐंपण से तात्पर्य लीपने या सजावट करने से हैं, जो कि किसी मांगलिक या धार्मिक अवसर पर देहरी या आंगन में विस्वार ;चावल के आटे का घोलद्ध तथा लाल मिट्टी से सुन्दर चित्रों के रूप में बनाई जाती है। 
ज्यूंति मातृका चित्राः इसमें विभिन्न रंगों के प्रयोग से देवी देवताओं के चित्रा बनाये जाते हैं। ऐसा चित्रा प्रायः जन्माष्टमी, दशहरा, नवरात्रि, दीपावली आदि त्यौहारों का मांगलिक अवसर पर बनाया जाता है। 
प्रकीर्ण चित्राः इसके अन्तर्गत रंग व ब्रश या अंगूलियों के माध्यम से कागज, दरवाजों, चैराहों आदि पर विभिन्न प्रकार के चित्रा बनाये जाते हैं। 
लक्ष्मी पौ चित्राः दीपावली के अवसर पर घर के मुख्य द्वार से तिजारी या पूजागृह तक लक्ष्मी के पद या पांव चिन्ह बनाये जाते हैं। इन्हें पौ कहा जाता है।