मद्महेश्वर

मद्महेश्वर पंचकेदार के अंतर्गत 'द्वितीय केदार' माना जाता है। भगवान शिव के मध्य भाग ;नाभि-स्थलद्ध का विग्रह, रमणीक स्थल मद्महेश्वर में है। यहाँ पर शंकर का भव्य मंदिर है, जहाँ नाभिस्थल की विशेष पूजा होती है। यह निर्जन घने जंगलों एवं पर्वत शिखरों से आवृत्त एक रमणीक तीर्थ एवं पर्यटक स्थल है। यहां पर रात्रि-पूजा विशेष आकर्षक एवं दर्शनीय है। शीतकाल में मंदिर बंद रहने के बाद मद्महेश्वर की पूजा ऊखीमठ में होती है, जहां पर एक विशाल मेला लगता है। स्कन्दपुराण के 47वें तथा 48वें अध्याय में मद्महेश्वर की महिमा इस प्रकार है-
अध्यमेश्वर क्षेत्राहिं गापितं भुवन त्राय। 
तस्य वै दर्शनान्यच्र्यों नाम पृष्टि बसवत्सदा।। 
पहले मद्महेश्वर जाने के लिए गुप्तकाशी, कालीमठ, राऊँलेक-राँसीगौंडार होते हुए लगभग 38 किलोमीटर का चढ़ाई युक्त पैदल मार्ग तय करना पड़ता था। अब ऊखीमठ से मनसूना तक मोटर मार्ग सुलभ हो जाने से वहाँ जाने के लिए लगभग 15 किलोमीटर का चढ़ाई युक्त पैदल मार्ग रह गया है।