वक्त बदलता गया और मानव सभ्यता ने पीढ़ी दर पीढ़ी विकास की नई सीढ़ियां चढ़ते हुए आज अपने आप को इतना सक्षम बना दिया है कि वह चांद पर भी घर बनाकर रहने लगा है। विकास वैसे तोमानव सभ्यता के लिए अत्यावष्यक है, लेकिन इस विकास की गाथा को यदि समुचित ढंग से और उपलब्ध संसाधनों का सही तरीके से दोहन करते हुए उपयोग किया जाये तो षायद यह और भी लाभकारी सिद्ध होगा। मानव सभ्यता आज भले ही चांद-मंगल पर घर बनाने में सक्षम हो गई हो, लेकिन इसके बावजूद भी हमारे समाज में आज भी महिलाओं की स्थिति कुछ अपवादों को छोड़कर दमनकारी नीति के अन्तर्गत ही दबी हुई है। महिलाओं की सफलता को आज भी हमारा यह पुरुशवादी समाज भ्ुाना नहीं पा रहा है। उसे ना जाने महिलाओं से इतना डर क्यों लगता है जो हरपल उसे अपने पुरुशप्रधान होने का दावा करना पड़ता है। वैसे तो देष में कोई भी कोना, षहर ऐसा नहीं है जहां महिलाएं घरेलू हिंसा या अन्य किसी प्रकार की हिंसात्मक कार्यवाही की षिकार ना हों लेकिन अभी हाल ही में कुछेक पुरुशों द्वारा जिस प्रकार सरेराह महिलाओं का चीरहरण करने का प्रयास किया गया और हमारा समाज मौन प्राणी बनकर यह देखता रहा या फिर कोई तो इतना महान निकला कि उसे अपने कैमरे में ही कैद करने में लगा रहा ये सब इस बात के साक्षात् उद्वाहरण है कि समाज आज भी वर्शों पहले की परम्पराओं में ही जी रहा है, जो इस प्रकार की घटनाओं को कैमरे में कैद कर रहे थे अच्छा होता कि वे उनकी मदद को आगे आते तो षायद यह एक मिषाल बन जाती है। कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं है जहां महिलाओं ने अपना लोहा ना मनवाया हो, बल्कि यह कहने में कोई अतिषयोक्ति नहीं होगी।
विकास की इस गाथा में एक तरफ विकसित समाज में सुनहरेस्वप्न हैं तो वहीं दूसरी ओर प्राकृतिक आपदाओं का पूर्वानुमान लगाना भी एक चुनौती भरा है। भारत के हिमालयी राज्यों के लिए यह एक सबसे बड़ी समस्या है, और इस समस्या का वैसे तो कोई ठोस हल निकाल पाना असंभव है लेकिन इससे बचने के लिए सुरक्षित उपाय तो हम कर ही सकते हैं, लेकिन हम यहां भी असफल हैं। जब कोई आपदा या विपदा आती है तो इससे निपटने के लिए षासन-प्रषासन को तुरंत सुरक्षात्मक कार्यवाही करते हुए उचित कदम उठाने होते हैं लेकिन उत्तराखण्ड के उत्तरकाषी जिले के असी गंगा में भारी बाढ़ से हुई तबाही और फिर उसके बाद षासन-प्रषासन का ढीला-ढाला रवैया जिससे वहां के लोगों को दो-तीन हफ्तों के लगभग समय बीत जाने के बाद भी आज तक कोई खास सहायता मुहैया नहीं हो पाई है। वहीं दूसरी तरफ राज्य के जिम्मेदार माननीय इस आपदा की घड़ी में राज्यवासियों कासाथ छोड़ लंदन की सैर पर निकल पड़े, षायद उनके लिए राज्य की आपदा से ज्यादा लंदन का ओलपिंक गेम्स हो!
बस हम तो इस बारे मेंक्या कहें जो हकीकत है वो आपके सामने है किसी से कुछ छुपा ही नहीं है। हमें तो आपके पत्रोंका इंतजार है और जीत की राह में आने वाली सभी कठिनाईयों का सामना करने में आपका सहयोग हमारी ताकत बन सकेगा।
महिलाओं से इतना डर क्यों