मन बौलेंद

बांस कि पिचगरि मा रंग तेरो,
कख खेलु मन आज बौलेदं मेरो।।
  होरी को हैंसरत लोगू कु एैगे 
  मीकू तै दैसत तेरि याद ह्वैगे।
  यूंका रंगु मा देखदु मी रंग तेरो 
  कख खेलु मन आज बौलेद मेरो।।
धम-धम ढवलकी-हुड़की कि द्यूर 
बंसुली कि भौण डांडयूं मा दूर-दूर 
चैकु-चैकु मा होलो नौनो को घेरो 
कख खेलु मन आज बौलेंद मेरो।।
  ग्यूं-जौ कि सारयूं मा घास कु होली,
  बाटो मा दिखेलि होरी कि टोली।
  चुलबुलि आंख्यूं को टपराट तेरो 
  कख खेलु मन आज बौलेंद मेरो।।
जुनख्यालि रातू मा होरी का गीत 
ध्यूर-भौजी कि मजाक कि रीत 
कबि ओबरा झट पाण्डा रगरयाट तरो 
कख खेलु मन आज बौलेंद मेरो।।
  खाणु छोड़ी तेरो झट भैर औणो
  झुस-मुषि रात मा रतब्यौण गैणो
  दगड़यों मा खुष-बुस खुबसाट तेरो 
  कख खेलु मन आज बौलेंद मेरो।।
खोलों मा होरी का छोरों का बीचा,
अंगुलि न बतान्दी छै कि 'वो' सीचा।
घुंगटी खैचि तैं सरमौणो तेरो,
कख खेलु मन आज बौलेंद मेरो।।
  अभागी रऊं मी जुु अऊं परदेष 
  याद औन्द आज अपणों गढ़देष 
 सुकलि - कपड़ी पैनी होरी को घेरो 
 कख खेलु मन आज बौलेंदु मेरो।।