न डर न भय

सरकारी विद्यालयों कि स्थिति अगर सुदृढ होती तो प्राईवेट स्कूलों की दुकान खुलती ही क्यों? सरकारी सिस्टम के नक्कारापन और जेब भरने की नीति के कारण सरकारी विद्यालय आज विद्यार्थी विहीन हो रहे हैं । सरकारी विद्यालयों में शिक्षक जितने हाई लेबल का कम्पीटिशन फाईट करके आते हैं उतनी ही सरलता से अपना शिक्षक धर्म भूल जाते हैं । यदि सरकारी मास्टर बीस प्रतिशत भी  पढाने पर ध्यान दें तो निजी स्कूलों की दुकानदारी बिल्कुल बंद हो जाएगी । पर ऐसा संभव नहीं है कारण सरकारी संस्थान चाहे फिर स्कूल हों, अस्पताल हों, कोई विभाग हो हर जगह काम करने वाले सरकारी कर्मचारियों की मानसिकता एक बात पर अटक जाती है कि काम करें या न करें वेतन तो मिल ही जाएगा ।
प्राईवेट संस्थानों में सरकारी संस्थानों के मुकाबले बहुत कम वेतन मिलता है पर उनकी कार्यकुशलता बेहतरीन होती है । वहां जिम्मेदारी होती है, डर होता है, आगे बढने का अवसर होता है, यही कारण है कि वह अपने कार्य को और अधिक निखारने का पूरा प्रयास करते हैं । जबकि सरकारी मतलब सरकारी न डर न भय, सिर्फ आराम ही आराम ।