न जाणे किलै

न जाणे किलै रौंद पापी चित्त यो उदास 
कखि औरि जा घुगती यूं डांडयूं ना बास।।


  कखि रौंद प्राण मेरेा कखि रौंद माटी,
  सूनी-सुनी लगदन जुनख्यालि राती।।
   न जाणे किलै...........................


सूरिज छुपि जांद जब धार पोर 
टपराणू रौंदू डारंयू मा को सी चकोर 
   न जाणे किलै...........................


  गाड़-गदन्यू छोया सुम-सुम बगदा
  गिद-गिद सूणि की मी खुद कैकी लगदा
   न जाणे किलै...........................


सुपिन्यों मा उड़ि जांदू कभि सौरों-पार,
कवि हंष भरी औंद दूदौ सी उमाल।।
   न जाणे किलै...........................