रुद्रप्रयाग जनपद में, रुद्रप्रयाग-केदारनाथ मार्ग पर सिन्धुतल से 1319 मीटर की ऊँचाई पर बसा यह देवस्थान, भगवान शंकर की शीतकालीन पूजा स्थली है। शीतकाल में पट बंद होने पर केदारनाथ तथा मद्महेश्वर से भगवान की चल मुर्तियों को यहां लाकर विधि-विधान के पश्चात् स्थापित करके नियमित पूजा-अर्चना की जाती है। यहां पर ऊषा-अनिरू( तथा शिव-पार्वती मंदिर दर्शनीय हैं। ऊखीमठ में केदारनाथ के पुजारी ;रावलद्ध का स्थायी निवास एवं केदारनाथ मंदिर समिति का मुख्य कार्यालय है। इस देवस्थल में आंेंकारेश्वर मंदिर का निर्माण संभवतः 16वीं शताब्दी में हुआ है, जो प्रदेश के प्रमुख मंदिरों में श्रेष्ठ मंदिर है। यहीं पर बाराही, भैरवनाथ, मुकुंद, घंटाकर्ण एवं दुर्गा की सुंदर मूर्तियां एक संग्रहालय में रखी गई हैं। बदरीनाथ मन्दिर के लिए जो स्थान जोशीमठ का है, वही स्थान केदारनाथ के सम्बन्ध में ऊखीमठ का है।
ऊखीमठ, रुद्रप्रयाग, गौरीकुंड, गुप्तकाशी तथा श्रीनगर से सीधी बस सेवा से जुड़ा है। आकाश स्वच्छ रहने पर यहां से केदार शिखर, चैखम्बा और हरी-भरी सुंदर पर्वत श्रेणियां दृष्टिगोचर होती हैं। यहां से 13 किलोमीटर पर गुप्तकाशी, 6 किलोमीटर पर मक्कूमठ, देवहरिताल तथा 10 किलोमीटर पैदल तथा 23 किलोमीटर सड़क मार्ग पर सि(पीठ-कालीमठ है। जनश्रुति है कि भगवान कृष्ण के पोते अनिरू( ने वाणासुर की कन्या उषा से यहीं विवाह किया था। उषा से ही इस स्थान का नाम ऊषीमठ ;ऊखीमठद्ध पड़ा।
ऊषीमठ ही ऊखीमठ