चमोली जनपद में जोशीमठ से 20 किलोमीटर की दूरी पर पाण्डुकेश्वर की पुरानी बस्ती में योगध्यान बदरी का मंदिर है और सामने ऊँचे शिखर पर पाण्डव-शिला दृश्यमान है। कहते हैं, यहाँ पर राजा पाण्डु अपनी दोनों पत्नियों, कुंती एवं माद्री के साथ निवास करते थे। यहीं पर पाण्डवांे का जन्म हुआ। राजा पाण्डु ने अपने को शाप मुक्त करने के लिए यहीं तपस्या की थी। इसलिए इस स्थान का नाम 'पाण्डुकेश्वर' पड़ा। यहीं पर भगवान बदरीनारायण अपनी योग-साधना में लीन हैं। यहां के मंदिरों के ताम्रपत्रा भारतीय इतिहास की अमूल्य निधि माने जाते हैं।
प्रतिवर्ष शीतकाल में बद्रीनाथ मंदिर के पट बंद होने पर बदरीनाथ जी को चतुर्मुखी उत्सव-मूर्ति यहां पर ससमारोह लाई जाती है। ग्रीष्मकाल में बद्रीनाथ मंदिर के कपाट खुलने पर यह मूर्ति पुनः बदरीनाथ मंदिर में प्रतिस्थापित की जाती है।
पांडवों की जन्म स्थली योगध्यान बदरी