मातमा गान्धी

एै जवा मातमा गान्धी तुम बिना सूनो हुयूंचा,
तुम जयां बटि देष मा घबरोला मच्यूंचा।।


  कखि हिन्दी को रौल़ा कखि अंगे्रजी को षौका
  अफराजी हुुयोंच जखी जैको जनी मौका
  भाशा का वारा मा भारि तातो दूध हुयूंचा
  तुम जयां बटि देष मा घबरोल़ा मच्यूंचा।।


स्वर्ग बटैकी देखा दौं गौं-गौल्यूं का हाल,
कखि भूखा छना लोग कखि पाणि को अकाल।
यीं गरीबी मा जीणों मुष्किल हुयूंचा
तुम जयां बटि देष मा घबरोला मच्यूंचा।।


  जख हून्दो छौ अन्न भारी दुबलो जम्यूंचा,
  गौं को गरीब किसाण भी सुनिन्द प्वड़यूंचा
  राषन की दुकान्यू मा धुर गुच्चो लग्यूंचा
  तुम जयां बटि देष मा घबरोला मच्यूंचा।।


बड़ा-बड़ा नेता ह्वोनी,क्वी तुम जनो नी ह्वाया,
कैला भी गरीबू को क्वी ख्याल नी काया।
भूखा-प्यासा लोगू की गान्धी रट लगींचा,
तुम जयां वटि देष मा घबरोला मच्यूंचा।।


  सौ वर्श बीती गैनी पर फिर भी तुम नी आया
  लोगू की नजर बाटा मा लगी राया
  एै जावा सुपन्यों तुमारो अवि अधुरो छूटयूंचा 
  तुम जयां बटि देष मा घबरोला मच्यूंचा।।


तुम जनता का सौं छना फिर धरती मा आवा,
अपणी भूखी प्यासी जनता तैं देखी जावा।
षान्ति कैरी जावा जो अषान्ति फेलींचा, 
तुम जयां बटि देषमा घबरोल़ा मच्यूँचा।।