रुकमा

तू होलि रूकमा अपणा हि दुख मा 
नी रई सुख मा जीवन मा,
यकुलो पराण, बिंडिनि झुराण
अनुके बुझाण मन-मन मा।।


  चिट्ठि तेरी आंदा, याद दिलांदा
  कोरि कि खांदा जिकुड़ि तैं,
  मन तड़फौंदा बस मा नि रौंदा
  कब देखलो वीं मुखड़ी तंै।।


तू समझौंदी मी तैं बुझौंदी
हौरि दुखौंदी ये मन तैं,
अपणि नि स्वचदी मेरि विचरदी 
भूलि नि सकदी क्या मीं तैं।।


  ज्वन्नि का दिन सदनि नि रांदा,
  कभी हंसादा छा हम तैं
  आज रूलांदा कना बौल्यांदा 
  तख त्वैतैं अर इख मी तैं।।


सास मा रई, दिल न दुखई
निरसे नि जई झट्ट औलो 
अब नि रयोंदो बिंडि नि सयोंदो
त्वै तैं भी दगडा मा लौलो।।