इसके गठन की घोषणा 1919 के अधिनियम में की गई थी।
1927 में इसका गठन किया गया, इसके अध्यक्ष सर जाॅन साइमन थे तथा इसके सभी सात सदस्य अंग्रेज थे। इसी कारण इसका विरोध किया गया।
डाॅ0 बी0आर0 अम्बेडकर व मोहम्मद शफी के नेतृत्व में मुस्लिम लीग के एक गुट द्वारा इसका स्वागत किया गया।
साइमन कमीशन के विरोध के परिणामस्वरूप लाठी चार्ज हुआ जिसके परिणाम स्वरूप लाला लालपत राज की मृत्यु हो गयी तथा पंडित गोविन्द बल्लभ पंत अंपग हो गए।
साइमन कमीशन के विरोध के कारण लार्ड विर्कनहेड (भारत सचिव) द्वारा भारतीयों को संविधान निर्माण की चुनौती दी गई। अतः 1928 में बम्बई में जिसमें मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में कमेटी की गठन किया गया।
1928 में मोतीलाल नेहरू व तेजबहादुर सप्रू ने नेहरू रिपोर्ट तैयार की गई व महात्मा गांधी द्वारा इसे प्रस्तुत किया।
मोहम्मद अली जिन्ना इस रिपोर्ट से संतुष्ट नहीं थें, अतः इन्हांेनें पृथक् रूप से चैदह सूत्राी मांग पत्रा प्रस्तुत किया।
1929 के लाहौर अधिवेशन में अध्यक्ष जवाहर लाल नेहरू द्वारा पूर्ण स्वराज प्रस्ताव रखा गया तथा 31 दिसम्बर 1929 को रावी नदी के तट पर भारतीय झण्डा पफहराया गया और 26 जनवरी 1930 को प्रथम स्वंतंत्राता दिवस मनाने की घोषण की। और सविनय अवज्ञा आंदोलन को प्रारम्भ करने की घोषणा की।
30 जनवरी 1930 को गांधी जी ने अपने पत्रा यंग इण्डिया में लार्ड इरविन के समक्ष 11सूत्राी मांगे रखी, किन्तु इसे वायसराय द्वारा नामंजूर करने के कारण सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारम्भ करने की घोषणा की गई।
12 मार्च 1930 को गांधी जी ने साबरमती आश्रम से दाण्डी तक की यात्रा प्रारम्भ की, यात्रा की कुल लम्बाई 385 किमी0 थी। 6 अप्रैल 1930 को वे अपने 78 सहयोगीयों के साथ दाण्डी पहुंचे व नमक कानून भंग किया इसी के साथ सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारम्भ हुआ।
सुभाष चंद्र बोस ने दाण्डी मार्च की तुलना नेपोलियन की पेरिस से आल्वा तक यात्रा से की।
दक्षिण भारत में सी0राजगोपालाचारी ने त्रिचनापल्ली से वेदारण्यम तक की यात्रा की।
उत्तर-पश्चिम सीमा प्रान्त में खान अब्दुल गफ्रपफार खां ने आन्दोलन का नेतृत्व किया। यहां चन्द्र सिंह भण्डारी के नेतृत्व में गढ़वाली सैनिकों ने लाल कृर्ती सैनिकों पर गोली चलाने से इनकार कर दिया। इसे पेशावर कांड की संज्ञा दी जाती है। बाद में गांधी जी ने चन्द्र सिंह भण्ड़ारी को गढ़वाली की उपाधि दी।
असम में कर्निघंम सरकुलर लागू किया गया। जिसके विरोध में जबरदस्त आन्दोलन हुआ।
नागालैण्ड में 13 वर्षिय बालिका रानी गिडांल्यू ने आन्दोलन का नेतृत्व किया।
इसी दौरान नवम्बर 1930 को ब्रिटिश सरकार द्वारा लंदन में पहला गोलमेज सम्मेलन का आयोजन किया गया।
5 मार्च 1931 को गांधी-इरविन समझौता हुआ। इसे दिल्ली पैक्ट भी कहा जाता है।
29 मार्च 1931 में कराची में कांग्रेस का सम्मेलन आयोजित किया गया जिसमें पूर्ण स्वराज, गांधी इरविन पैक्ट व मौलिक अधिकार का प्रस्ताव पारित किया।
दिसम्बर 1931 में दूसरा गोलमेज सम्मेलन आयोजित किया गया। इसमें कांग्रेस प्रतिनिधि के रूप में गांधी जी ने भाग लिया।
14 अगस्त 1932 को ब्रिटिश प्रधानमंत्राी रैम्जे मैक्डोनाल्ड ने सांप्रदायिक निर्णय की घोषणा की, पफलस्वरूप 20 सितम्बर 1932 को गांधी जी ने आमरण अनशन आरम्भ कर दिया।
साइमन कमीशन व नेहरू रिपोर्ट