प्रथम स्वतंत्राता संग्राम 1857 में इस क्षेत्रा का योगदान अत्यंत सीमित रहा। इस समय इस क्षेत्रा के कमिश्नर सर हेनरी रेमजे थे। 1857 के गदर में उत्तराखण्ड काली कुमायूं के नेता कालू मेहरा ने अंग्रेजों के विरोध में गुप्त संगठन बनाकर छिटपुट रूप से विद्रोह किया। वे अवध के शासक वाजिद अली शाह के कहने पर इसमें सम्मिलित हुए थे।
1858 में अल्मोड़ा में तोपखाने के भारतीय सिपाहियों ने विद्रोह किया। ऽ 1871 में अल्मोड़ा अखबार का प्रकाशन आरम्भ हुआ था। 1903 में अल्मोड़ा में हरगोविन्द पंत तथा गोविन्दे बल्लभ पंत ने हैप्पी क्लब की स्थापना की। 1905 में देहरादून से गढ़वाली साप्ताहिक पत्रा का प्रकाशन आरम्भ हुआ जिसने इस क्षेत्रा में राष्ट्रीय भावनाओं के संचार का कार्य किया।
1912 में प्रसि( क्रान्तिकारी रास बिहारी बोस के नेतृत्व में देहरादून में सम्मेलन का आयोजन किया गया। इसी वर्ष कुमायूं में कांग्रेस की स्थापना की गई। 1916 में नैनीताल में कुमाऊँ परिषद् की स्थापना की गई, जिसके नेतृत्व मंे कुली उतार, कुली बेगार, कुली बर्दायश आदि प्रथाओं का कड़ा विरोध किया गया। 1917 में गांधी जी द्वारा भी अल्मोड़ा व नैनीताल में स्वराज सभाओं का आयोजन किया गया था।
1921 में कुमायूँ परिषद् द्वारा बद्रीदत्त पाण्डेय के नेतृत्व में कुली बेगार के विरू( आन्दोलन आरम्भ किया। 4 अगस्त 1921 के दिन कुली बेगार से संबंधित रजिस्टर सरयू नदी में प्रवाहित कर दिए गए। ऽ गढ़वाल में मुकुंदी लाल बैरिस्टर ने कुली उतार आंदोलन का नेतृत्व किया था।
सविनय अवज्ञा आन्दोलन के दौरान आयोजित डांडी मार्च में गांधी जी के 78 सहयोगियों में तीन व्यक्ति उत्तराखण्ड से भी सम्मिलित हुए। ये थे- ज्योतिराज कांडपाल, खड़ग बहादूर व भैरव दत्त जोशी।
26 जनवरी 1930 को टिरही रियासत को छोड़कर सम्पूर्ण उत्तराखण्ड में राष्ट्रीय ध्वज पफहराया गया व स्वतंत्राता दिवस मनाया गया। सविनय अवज्ञा आन्दोलन के दौरान पेशावर में श्री चन्द्र सिंह भण्डारी के नेतृत्व में 2/18 राइफ्रलस के सैनिकों द्वारा लाल कुर्ती सैनिकों पर गोली चलाने से इंकार कर दिया गया। बाद में गांधी जी ने इन्हें गढ़वाली की उपाधि देकर सम्मानित किया गया।
1930 में ही चन्द्र शेखर आजाद अन्य क्रांतिकारियों के साथ पिस्तौल का परिक्षण लेने दुग्गड़ा आए।
1937 में प्रांतीय विधानसभा चुनाव में इस क्षेत्रा से अनुसुया प्रसाद बहुगुणा, हरगोविंद पंत, गोविंद वल्लभ पंत आदि निर्वाचित हुए थे।
1938 में श्रीनगर में प्रताप सिंह नेगी आदि के द्वारा राजनैतिक सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसमें जवाहरलाल नेहरू तथा विजय लक्ष्मी पंडित भी सम्मिलि हुए। इन्हीं दिनों गढ़वाल में प्रतापसिंह नेगी द्वारा जागृत गढ़वाल संघ की स्थापना की गई।
1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान इस क्षेत्रा में लोगों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया। आन्दोलन के दौरान अल्मोड़ा के देघाट नामक स्थान पर प्रदर्शनकारियों पर पुलिस द्वारा गोलियां चलवायी गई जिसमें हरिकृष्ण व हीरामणि नामक व्यक्ति शहीद हो गए। यह इस क्षेत्रा में पहला गोलीकांड था। इसी दौरान सल्ट क्षेत्रा में हुई गोलीबारी में भी कई लोग शहीद हुए, गांधी जी ने सल्ट क्षेत्रा को कुमायूँ का बारदोली की संज्ञा दी।
स्वतंत्रता आन्दोलन में उत्तराखण्ड