थड़िया नृत्यः गढ़वाल क्षेत्रा में बसंत पंचमी से विखोत ;विषुवत संक्रांतिद्ध तक विवाहित लड़कियों द्वारा घर के थाड़ ;आंगन/चैकद्ध में थड़िया गीत गाये जाते हैं और नृत्य किये जाते हैं। यह नृत्य प्रायः उन विवाहित लड़कियों द्वारा किया जाता है, जो पहली बार मायके आती हैं।
सरौं नृत्यः यह गढ़वाल क्षेत्रा का ढोल के साथ किया जाने वाला यु( गीत नृत्य है जिसके प्रथम चरण में ढोल-ढोली जोड़े में करतब दिखाते हैं और दूसरे चरण में ढोल की ताल पर नर्तक तलवार-ढाल का स्वांग कर करतब दिखाते हैं। यह नृत्य टिहरी, उत्तरकाशी में खूब प्रचलित है।
हारूल नृत्यः यह जौनसारी जनजातियों द्वारा किया जाता है। इसकी विषय वस्तु पांडवों के जीवन पर आधारित होता है। इस नृत्य के समय 'रमतुला नामक वाद्यमंत्रा' अनिवार्य रूप से बजाया जाता है।
पण्डवार्त नृत्य/नाट्यः गढ़वाल क्षेत्रा में पांडवों के जीवन प्रसंगों पर आधारित नवरात्रा में 9 दिन चलने वाले इस नृत्य/नाट्य आयोजन में विभिन्न प्रसंगों के 20 लोक नाट्य होते हैं। चक्रव्यूह, कमल व्यूह, गैंडी-गैंडा वध आदि आदि नाट्य विशेष रूप से प्रसि( हैं। केदार घाटी में 1 हजार घंटे गाये जा सकने वाली पंडवार्त वार्ताओं का संकलन उपलब्ध है। ढोल के 32 तालों व सैकड़ों स्वर लिपियों का इस्तेमाल इन वार्ताओं के गायन एवं नृत्य में होता है जो भारत का एक अनूठा उदाहरण है।
मण्डाण नृत्यः गढ़वाल क्षेत्रा के टिहरी एवं उत्तरकाशी जनपदों में देवी-देवता पूजन, देव जात और शादी-ब्यूह के मौकों पर यह नृत्य होता है। चार-तालों में किये जाने वाले इस नृत्य में शरीर के हर एक अंग का इस्तेमाल होता है। एकाग्रता इस नृत्य की पहली शर्त है। नृत्य का अंत 'चाली' या 'भौर' से होती है। इसी नृत्य को 'केदार नृत्य' के नाम से जाना जाता है।
लंगविर नृत्यः यह पुरुषों द्वारा किया जाने वाला नट नृत्य है। इसमें पुरुष खम्भे के शिखर पर चढ़कर उसी पर संतुलन बनाकर ढोल नगाड़ों पर नृत्य करता है।
चैंपफला नृत्यः राज्य के गढ़वाल क्षेत्रा में स्त्राी-पुरुषों द्वारा एक साथ या अलग-अलग टोली बनाकर किए जाने वाला यह श्रृंगार भाव प्रधान नृत्य है। ऐसी मान्यता है कि इस नृत्य को पार्वती ने शिव को प्रसन्न करने के लिए किया था। इसमें किसी वाद्य यंत्रा का प्रयोग न होकर हाथों की ताली, पैरों की थाप, झांझ की झंकार, कंगन व पाजेब की सुमुधुर ध्वनियां ही मादकता प्रदान करती है। इस नृत्य में पुरुष नर्तकों को चैंपफुला तथा स्त्राी नर्तकों को चैपफलों कहते हैं।
इस नृत्य की शैलियां खड़ा चैंपफला, लालुड़ी चैंपफला, मयूर चैंपफला आदि हैं। यह नृत्य बिहू और गरबा श्रेणी का है।
तांदिनृत्यः गढ़वाल के उत्तरकाशी और जौनपुर ;टिहरीद्ध में यह नृत्य किसी विशेष खुशी के अवसर पर एवं माघ महिने में किया जाता है। इस नृत्य के साथ में गाये जाने वाले गीत तत्कालिक घटनाओं, प्रसि( व्यक्तियों के कार्यों पर रचित होता है।
झुकैलो नृत्यः तात्कालिक प्रसंगों पर आधारित गढ़वाल क्षेत्रा का यह गायन नृत्य झूम-झूमकर नव विवाहित कन्याओं द्वारा किया जाता है। झुमैलो की भावना प्रकृति या मायके की स्मृति से जुड़ी हुई हो सकती है।
चांचरी नृत्यः गढ़वाल क्षेत्रा में माघ माह की चांदनी रात में स्त्राी-पुरुषों द्वारा किया जाने वाला यह एक श्रृंगारिक नृत्य है। मुख्य गायक वृत्त के बीच में हुड़की बजाते हुए नृत्य करता रहता है। कुमाऊँ क्षेत्रा में इस नृत्य को झोड़ा कहते हैं।
छोपती नृत्यः गढ़वाल क्षेत्रा का यह नृत्य प्रेम एवं रूप की भावना से युक्त स्त्राी-पुरुष का एक संयुक्त नृत्य है। यह नृत्य संवाद प्रधान होता है।
घुघती नृत्यः गढ़वाल क्षेत्रा में यह नृत्य छोटे-छोटे बाल-बालिकाओं द्वारा मनोरंजन के लिए किया जाता है।
भैला-भैला नृत्यः गढ़वाल क्षेत्रा में यह नृत्य दीपावली के दिन भैला बांधकर किया जाता है।
पवाड़ा या भड़ौ नृत्यः गढ़वाल एवं कुमाऊँ क्षेत्रा में ऐतिहासिक और अनैतिहासिक वीरों की कथाएं इस नृत्य के माध्यम से प्रस्तुत किये जाते है। यहां ऐसी मान्यता है कि वीरों के वंशजों में वीरों की आत्मा प्रवेश करती है। ऐसे व्यक्ति जिसमें वह आत्मा प्रवेश करती है उसे पस्वा कहते हैं। यही पस्वा विभिन्न अस्त्रों से कलाबाजियां करते हुए पंवाड़ा नृत्य करते हैं।
जागर नृत्यः गढ़वाल एवं कुमाऊँ क्षेत्रा में पौराणिक गाथाओं ;नागराज कृष्ण, स्थानीय देवताओं एवं पांडवों संबंधी गाथाओंद्ध पर आधारित यह नृत्य भी पस्वा द्वारा कृष्ण, पांडवों, भैरों, काली आदि को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। जागर गीतों का ज्ञाता 'जगर्या' हाथ में डमरू व थाली लेकर तथा हरिजन वादक 'औजी' हुड़का-हुड़को व ढोल-दमामे बजाते हुए विशिष्ट 'पस्वा'।
झोड़ा नृत्यः कुमाऊँ क्षेत्रा में यह माघ के चांदनी रात्रि में किया जाने वाला स्त्राी-पुरुषों का श्रृंगारिक नृत्य है। मुख्य गायक वृत्त के बीच में हुड़की बजाता नृत्य करता है। यह एक आकर्षक नृत्य है, जो गढ़वाल के 'चांचरी' के समान पूरी रात किया जाता है। इसका प्रमुख केन्द्र बागेश्वर है।
छोलिया नृत्यः कुमाऊँ क्षेत्रा का यह एक प्रसि( यु( नृत्य है जिसे शादी या धार्मिक आयोजन में उल्लास में ढाल व तलवार के साथ किया जाता है। यह गढ़वाल के सरौं, पौणा नृत्य की तरह है। यह नार्गजा ;नागराजद्ध, नरसिंह तथा पाण्डव लीलाओं पर आधारित नृत्य है।
उत्तराखण्ड नृत्य एवं नाट्य