विश्वविख्यात हेमकुण्ड

मध्य हिमालय की गोद में प्राकृतिक सुषमा से भरपूर विश्वविख्यात, अद्वितीय, मनोरम स्थलों में एक स्थल, ऐतिहासिक गंधमादन पर्वत पर हिमाच्छादित शिखरों के मध्य हेमकुण्ड लोकपाल ;4329 मीटरद्ध तीर्थ सिखों की आस्था का प्रमुख केन्द्र है। लोकपाल, त्रोता युग में लक्ष्मण जी की तपस्थली रही है, इसलिए यह प्राचीन तीर्थ हिंदुओं की भी श्र(ा का केन्द्र है। लोकपाल को दंड पुष्करणी तीर्थ कहा जाता है। इसके निकट स्थित रम्यगिरि पर्वत के आठवंे श्रृंग को भगवान विष्णु ने अपने दंड से प्रताड़ित कर गंधर्व परियों को जल-क्रीड़ा के लिए पुरस्करणी रूप दिया। 
दण्डेनाहत्य हरिणा यतस्तीर्थ विनिर्मितम्।
दण्डपुस्करणीत्येतत् ततो लोकपसौरव्यदम्।।
सिक्खों की मान्यता है कि हेमकुण्ड में सिक्खों के दसवें गुरु गोविंद सिंह ने पूर्व-जन्म में तपस्या की थी तथा 'खालसा-दर्शन' का सूत्रापात किया था। पवित्रा सिक्ख ग्रंथ 'विचित्रा नाटक' में अंकित है-
हेमकुण्ड पर्वत है जहां सप्त श्रृंग सोहत है वहां। 
तहां हम अधिक तपस्या साधी, महाकाल का अपराधी।। 
)षिकेश-बद्रीनाथ यात्रा मार्ग पर जोशीमठ से 24 किलोमीटर दूर पाण्डुकेश्वर के समीप अलकनंदा के तट पर स्थित गोविंदघाट से हेमकुण्ड की पैदल चढ़ाई प्रारंभ होती है। गोविंदघाट से 10 किलोमीटर की दूर पर भ्यूँडार गांव तथा उसके 4 किलोमीटर आगे घांघरिया है। गोविंदघाट तथा घांघरिया में वन विभाग, पर्यटन विभाग तथा निजी संचालित विश्रामगृह एवं गुरुद्वारे हैं। यहां पर ग्रीष्मकाल के चार महीनों में हेमकुण्ड यात्राकाल में कापफी चहल-पहल रहती है। यहां घोड़े, पालकी तथा श्रमिकों की व्यवथा सुलभ है। घांघरिया में यात्राी सुविधा की दृष्टि से एक रात्रि विश्राम करते हैं। इस स्थान पर चारों ओर पर्वतों पर वृक्षावलि की सुंदर छटा देखने को मिलती है। सामने ही नीलकंठ पर्वत ;7500 मीटरद्ध का भव्य शिखर है तथा पृष्ठ भाग में काकभुशंडि का ग्लेशियर दृष्टिगोचर होता है। 
घांघरिया से एक मार्ग बायीं तरपफ भ्यूँडार गंगा के साथ 2.5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित विश्वविख्यात पफूलों की घाटी को जाता है तथा दूसरी ओर दायीं तरपफ 5.50 किलोमीटर की दूरी पर कष्टसाध्य दुर्गम चढ़ाई युक्त मार्ग है, जिसके द्वारा हेमकुण्ड पहुंचा जा सकता है। इसका प्राचीन नाम लोकपाल है। यह हिमानी तीर्थ धार्मिक आस्थाओं के साथ-साथ अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए भी विख्यात है। जनपद चमोली के सीमांत क्षेत्रा की 'मारछा' जनजाति समुदाय के लोग ग्रीष्मकाल के मुख्य पर्वों पर यहां अपने परम्परागत पावन लोकपाल तीर्थ में स्नान-पूजा-अर्चना करने तथा मनौती मानने आते हैं। अगत-सितम्बर में बपर्फ पिघलने के बाद यहां के ग्लेशियरों के ढलानों तथा बुग्यालों में अनेक भांति के दुर्लभ पुष्प, जड़ी-बूटियां, ब्रह्मकमल, पफेनकमल आदि खिले दृष्टिकोचर होते हैं। 
हेमकुण्ड तीर्थस्थान की खोज सन् 1930 से प्रारंभ हुई थी। सन् 1935-36 मेें यहां पर एक छोटे से गुरुद्वारे की स्थापना की गई थी। गढ़वाल हिमालय में स्थित हेमकुण्ड एवं प्राचीन ऐतिहासिक लोकपाल तीर्थ को सिक्ख-हिंदू धर्मावलंबी अपना 'कैलाश-मानसरोवर' मानते हैं। हिंदुओं में प्रचलित उक्ति -'और तीर्थ सौ बार, गंगासागर एक बार' की भांति ही सिक्खों में भी हेमकुण्ड के सम्बन्ध में यही मान्यता है।