हरीं धोति सबकि बीच मुखड़ि को पाणि
झपन्यलि डाली मा पकी नारंगी सि दाणी।।
घुंगरयलि लटुलि बथौं मा कन्दुण्यु का धोरा
गुर-गुर उडदन जन गुणमुणादा भौंरा
हिलांस कि सी गलि मा कनी रंग विरंगी माला
झुमक्यलि मछलि देखेन्दन सटयूं कि सि बाल्।
मोत्युं कि सी माला देखेन्द दतुंण्यू की पाटी
खिच्च हैंसद चाल सी चमकद अधेंरि राती
उठण्यूं को रंग अहा कनो भलो खिल्यूंचा
भुति-भुति डाली मा जनो बुरांष फुल्यूंचा।
फलार डाल्यूं मा जैकि फौंग्यू तंै लग्योंन्दा
फुर इनै-कवि उनै जनी चखुलि सी उड़ौंन्दा
आरि की सी चिरी कनी छड़छड़ी च बांद
बाटा को बटोई देखी की बाटो विसरि जान्दा।।
हरयाँ घास बीच देखेन्द फ्यूलड़यूंसि फूल
पीठि मा धौपेलि विरजद जनि वगदी कूल
विगरैलि मुखड़ी देखीक फीकी प्वड़दा जून
अनमनि - भांति को चड़े जवानी को खून
आख्यूं तै देखणू कु लगद दिल मा भारि गासी
टर-पर टर-पर रिंगदन पाणि की सी माछी
समलि कि रगरयाट तेरो उलरयोंद प्राणी
मी पर तेरि माया एैगे मिन कवी नि जाणी।