अपनों को छोड़ आया हूं मैं

आज.....   ?
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बस तारीख मे ही सिमट गया हूँ मैं.
मुहब्बत का भी एक दिन लाया हूँ मैं
जिसमे माँ बाप का भी दिन एक है.
वो कैलेन्डर खरीद लाया हूँ मैं.
भौतिक सुखो की दौड में. दिन
बामुश्किल निकाल पाया हूँ मै.
दुनिया भर का साजो सामान
खरीद लाया हूँ मै.
बदले में कुछ अपनो को
छोड़ आया हूँ मैं.
हर और भीड खरीद ली
मैने अपने शोहरत के दम पर.
बस कभी प्यार न खरीद पाया मै.
बस इसी लिये कैलेन्डर खरीद लाया मै.
जब कुछ न था कितना
आजाद था मै.
सब कुछ मिला आज तो
तारीखो मे सिमट गया मै.
वास्तव में आज गुलाम हो गया मै.
लगता है आज बदल गया मै
सन्दीप गढ्वाली ©®