मैक्स उत्तराखंड के सफर की हमसफर

उत्तराखंड बने दो दशक हो चले हैं पर मूलभूत सुविधाओं की स्थिति आज भी शून्य है कल भी शून्य थे। आम जन मानस सिर्फ वोटर बनकर रह गया है। ऐसे में जो भी उत्तराखंड की गाड़ी खिंच रहे हैं वो एक वरदान से कम नहीं है। उत्तराखंड पूरी तरह से पहाड़ी राज्य है जहां टेड़ी मेडी सड़कें  हैं जिनमें से अधिकतर कि स्थिति कच्ची टूटी-फूटी है। ऐसे में इन सड़कों से जुड़े गांववासियों को आवाजाही के लिए एक ही सहारा है वह मैक्स। परंतु पलायन की मार भी इन पर पड़ी है। जनता को आवाजाही की सुविधा उपलब्ध करवाने की दिशा में सरकारी स्तर पर दो दशक में एक भी कदम नहीं बढ़ाया गया है।
मैक्स से पहले इस जिम्मेदारी को टाटा सूमो ने बखूबी निभाया बल्कि किसी किसी रूट पर तो आज भी टाटा सूमो हमसफर बनी हुई है। परंतु यात्रा सीजन आने पर इन बची कुची टैक्सियों की बुकिंग के चलते पहाड़ी मार्गों पर लोग फिर पैदल हो जाते हैं। ऐसे में धन्य है उत्तराखंड के माननीय जो अपनी कुर्सी और पोटली कि चिंता करते करते चितामय हो जाते हैं अगर एक प्रतिशत भी जनहित में काम किया होता तो पहाड़ खाली नहीं खुशहाल होते। पर शुक्र है कि मैक्स जैसी भी है जितनी भी है वही हमसफर बनकर साथ निभा रही हैं।