मुख्यमंत्री के गृह जनपद में बाघ का आतंक, 7 वर्षीय बालक को बनाया शिकार

तउत्तराखंड समस्याओं का प्रदेश बनकर रह गया है। आज यह सिर्फ राजनीतिक विचारधारा के लोगों को सत्ता प्राप्ति का ऐसा केंद्र बन गया है जिन्हें आम आदमी सिर्फ वोट मशीन नजर आती है उसके सिवाए कुछ नहीं। पलायन रोको-पलायन रोको चिल्लाते चिल्लाते यहां के नेताओं ने चाहे प्रधान हो, बीडीसी हो, जिला पंचायत सदस्य हो, विधायक हो, सांसद हो, मंत्री हो, मुख्यमंत्री हो या फिर किसी विभाग के मुखिया सब के सब देहरादून, हरिद्वार, हल्द्वानी या फिर अन्य किसी आरामदायक जगह जाकर बस गए हैं। पहाड़ों में जो लोग रह गए हैं वो या तो वाहन दुर्घटना का शिकार हो जा रहे हैं या फिर किसी जंगली जानवर का निवाला बन जा रहे हैं। यही सत्य है।
बड़ा दुःख होता है कि उत्तराखंड का बुरा हाल करने वाले सुकून से जी रहे हैं और सजा यहां के नौनिहालों को मिल रही है। 
आज फिर हृदय विदारक घटना मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ही नहीं बल्कि केन्द्रीय मंत्री डा निशंक, वन मंत्री डा हरक सिंह, पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज, उच्च शिक्षा मंत्री धन सिंह जिनकी गृह नगरी एक ही है वहां हुई है। पौड़ी गढ़वाल के पोखड़ा ब्लाक के देवकुंडई गांव में 7 वर्षीय बालक को बाघ ने अपना शिकार बना दिया। जिससे क्षेत्र में एक बार फिर दहशत का माहौल बन गया है। इससे पूर्व एक माह पहले भी यहां बाघ एक भाई-बहन को घायल कर चुका था जिसमें समाजसेवी और कांग्रेसी नेता कविन्द्र इष्टवाल के प्रयासों के बाद बमुश्किल उस बालिका को बेहतर इलाज मिल पाया और उस बालिका को वीरता पुरस्कार के लिए नामित किया गया।
परंतु उस घटना से वन विभाग कोई सबक न ले सका और एक 7 साल के बच्चे को बाघ ने अपना शिकार बनाया। मन रो जाता है ऐसी घटनाओं पर लिखने पर, पर न जाने ऐ विभाग के मुखिया और मंत्री जानवरों से आम आदमी की रक्षा करने के बजाए पल्ला झाड़ने का मौका क्यों तलाशते रहते हैं।
आखिर पहाड़ पर कोई रहे तो क्यों रहे? क्या जानबूझकर अपने नौनिहालों की जान को खतरे में डाले?
क्षेत्र की समाजसेविका पूनम कैंतुरा ने शासन-प्रशासन से इस सम्बन्ध में ठोस कार्रवाई करने की मांग की साथ ही क्षेत्र में एक शूटर तैनात करने की भी मांग की ताकि नौनिहालों को बेमौत न मरने दिया जाए। पूनम कैंतुरा ने सबसे इस संवेदनशील मुद्दे का मिलकर एक साथ आवाज उठाने के लिए कहा।