ये भी सच है..........
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मेरी लिखी गजल को.
वो अपना नाम दे गये.
इसी बहाने शब्दो को.
पहचान दे गये. ................
वर्ना तडप रहे थे शब्द
मेरे संग गरीबी में.
वो गुनगुना बैठे तो शब्दो को
एक मुकाम दे गये. ....................
मै तो लिखकर कर देता हूँ
कैद पन्नों पर शब्दो को.
वो महफ़िल मे बोल कर
उन्हे आजाद कर गये. ................
लोग करने लगे सवाल कि
कितने मे बिके सन्दीप
उन्हे क्या पता की हम
कंगाल के कंगाल रह गये. ...........
सन्दीप गढ्वाली ©®
ये भी सच है....